आध्यात्मिक विचार शैली : अगस्त 2025

सोमवार, 4 अगस्त 2025

☀️साधना - 3☀️

साधना

💖अगर आप ऋणानुबंध के अपने स्तर को जाँचना चाहते हैं, तो आप किसी अपरिचित जगह पर या किसी अनजाने फर्नीचर पर अकेले बैठने की कोशिश करें। खुद पर बारीकी से गौर कीजिए। 

💖आपका शरीर कितने आराम में है? क्या वह असहज है? क्या ऐसा लगता है कि वह कहीं और होना चाहता है? आपने देखा होगा कि बूढ़े लोगों के पास अक्सर एक पसंदीदा कुर्सी होती है।

 💖कई परिवारों में, लोग खाने की मेज पर किसी खास कुर्सी को चुनते हैं। इनमें से कुछ सुविधा या आदत की बात होती है। लेकिन यहाँ अक्सर ऋणानुबंध काम कर रहा होता है।

💖आप जितना अधिक ऋणानुबंध इकट्ठा करते हैं, उतना ही आप आध्यात्मिक विकास की सीढ़ी पर नीचे की ओर जा रहे होते हैं।

 💖कर्म आपके लिए एक सीमा तय करता है। जब वह सीमा ज्यादा आरामदेह हो जाती है, तो यह सावधान हो जाने का समय होता है।

💖 वही कुर्सी या कमरा आपको शारीरिक प्राइवेसी दे सकता है, लेकिन अगर आप उसपर अपना अधिकार समझने लगते हैं या उसे लेकर परेशान हो जाते हैं, जैसे कि आपकी पहचान इसी पर निर्भर है, तो यही समय है कि आप अपने कर्म को झकझोरना शुरू करें।

💖कई आध्यात्मिक परंपराओं में साधकों को मठ और आश्रम में रखने का कारण उन्हें एक निर्धारित भौगोलिक स्थान में रहने के लिए सक्षम बनाना था, जो ऋणानुबंध से मुक्त था। 

💖लेकिन इससे कभी-कभी नई सीमाएँ और क्षेत्र बन जाते थे, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

 💖इसका उद्देश्य हमेशा साधक को अपने क्षितिज कोसीमित करने के बजाय, उसका विस्तार करने के लिए सशक्त बनाना था। 

💖बाहरी दुनिया में, उनका ऋणानुबंध अक्सर उन्हें बार-बार कुछ खास लोगों या जगहों या परिस्थितियों की तरफ खींचता था।

💖 क्षेत्र-संन्यास में एक खास प्राण-प्रतिष्ठित भौगोलिक स्थान को कभी न छोड़ने की शपथ ली जाती है- यह एक ऐसा तरीका था जिससे साधक शारीरिक स्मृति के शक्तिशाली शिकंजे से खुद को आजाद कर लेते थे।

रविवार, 3 अगस्त 2025

💥जब मृतक आपके जरिए जीते हैं💥

जब मृतक आपके जरिए जीते हैं

🎉हाल ही में लॉस एंजिल्स में आयोजित एक कार्यक्रम में, मैंने चार महिला प्रतिभागियों को देखा जो एक जैसी दिखती थीं। वे बहनें नहीं थीं। बस उनकी डॉक्टर एक ही थी ! तो, ऐसे कारगर तरीके मौजूद हैं जिनसे हम आज अपनी आनुवांशिकता को नया रूप दे सकते हैं।

🎉भारत में, पारंपरिक रूप से संस्कार शब्द का इस्तेमाल हमारे वर्तमान पर हमारी आनुवांशिक स्मृति के स्थायी असर को बताने के लिए किया जाता है। आपका शरीर वास्तव में आपके मन की तुलना में एक खरब गुना ज्यादा स्मृति रखता है। संस्कार शब्द वंशगत स्मृतियों और छापों के भंडार को दिखाता है, जो हमें हमारे पूर्वजों, हमारे वंश या हमारी जाति से विरासत में मिले हैं।

🎉और इसलिए, जब कोई बच्चा बहुत ही अच्छा गाता है, तो लोगों का यह कहना आम बात है, 'वाह, क्या संस्कार हैं इस बच्चे के !' इसका मतलब है कि यह विशेष उपहार बच्चे को उसके जीन-पूल, उसके पैतृक ज्ञान से मिला है।

🎉ये आनुवांशिक स्मृतियाँ अपने आप में सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होर्ती । फर्क इस बात से पड़ता है कि हम उन्हें कैसे संभालते हैं। हमारे पूर्वजों की स्मृतियाँ हमारे भीतर मौजूद रहती हैं। लेकिन यह स्मृति बंधन का कारण बन गई है या हमारे लिए फायदेमंद है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमने उससे कितनी दूरी बनाई है।

🎉मृत लोग अलग-अलग तरीकों से आपके माध्यम से जीने की कोशिश करते हैं। इसे समझने में गलती मत कीजिए। अपने या आस-पास के लोगों के जीवन कोदेखिए। कई लोगों के लिए बच्चे पैदा करना अपने देश को आगे बढ़ाना या दंशার चीजों को अमर बनाने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना है कि वे मरने के बाद भी जीवित रहेंगे। इससे वे भावी पीढ़ियों तक जिंदा रहने की उम्मीद करते हैं। 

🎉तो अपने पूर्वजों को भी कम मत समझिए। वे भी आपके जरिए जीने की कोशिश कर रहे हैं। यह खुद को कायम रखने की वंशानुगत स्मृति की प्रकति है। हम अपने पूर्वजों के बहुत ऋणी हैं। लेकिन अगर हमें इस धरती पर एक आजाद, पूर्ण रूप से विकसित जीवन जीना है- अपने पूर्वजों की कठपुतली बनकर नहीं रहना है तो हमें पहले एक स्वर्तन व्यक्ति बनने के तरीके खोजने चाहिए।

🎉आध्यात्मिक प्रक्रिया पृथकता या अलग होने के भ्रम को तोड़ती है। इस मार्ग पर चलने का मतलब है, एक व्यक्ति (इंडिविजुअल) बनना। यह एक विरोधाभास लग सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं। जब आप कई प्रभावों का परिणाम होते हैं, तो आप एक भीड़ की तरह होते हैं। जब आप भीड़ का या प्रभावों का पुलिंदा होते हैं, तो रूपांतरण असंभव है। भीड़ समय के साथ विकास कर सकती है, लेकिन उसे रूपांतरित नहीं किया जा सकता।

🎉 जैसा कि रूपांतरण शब्द से पता चलता है, उसके लिए एक रूप की जरूरत होती है। सिर्फ अकेले व्यक्ति को ही रूपांतरित किया जा सकता है, या वह पृथकता के साथ अपनी सैकरी पहचान के परे जा सकता है। एक झुंड के लिए कभी प्रबुद्ध होना संभव नहीं है। प्रबुद्धता सिर्फ अकेले व्यक्ति को प्राप्त हो सकती है।

🎉मैं अक्सर मजाक करता हूँ कि सिर्फ दो तरह के भूत होते हैं: बिना शरीर के भूत और शरीर वाले भूत! अधिकतर लोग शरीर वाले भूत हैं। संक्षेप में कहें तो, वे अपने अतीत की छाया हैं। उनका जीवन बस उनके पूर्वजों की स्मृति से बना होता है।

🎉संस्कार महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये हमें यह याद दिलाते हैं कि हम कई सूक्ष्म और गहरे स्तरों पर स्मृति से आकार लेते हैं, जिनके बारे में हमें पता भी नहीं होता। हो सकता है कि आप इसके प्रति सचेत न हों, लेकिन मनुष्य के भीतर कुछ ऐसा होता है जो इस आजादी के खोने पर अप्रसन्न होता है।

🎉जेल का जीवन इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। जब मैं जेलों में कार्यक्रम आयोजित कर रहा था, तब मैंने इसे अपनी आँखों से देखा है। जेलों के बारे में दिलचस्प बात यह है कि वहाँ लोग वास्तव में बहुत अच्छी तरह व्यवस्थित हो सकते हैं।

 🎉समय पर खाना मिलता है; आपको कपड़े और आश्रय दिया जाता है; आपके लिए बत्तियाँ जलाई और बंद की जाती हैं; आपके लिए दरवाजे खोले जाते हैं और हाँ, आपके अंदर आ जाने पर बंद भी कर दिए जाते हैं! जो लोग बाहर बहुत अभाव में जीवन जीते हैं, उनके लिए जेल एक व्यवस्थित विकल्प है। 

💦ऋणानुबंध : शारीरिक स्मृति का माया-जाल💦

ऋणानुबंध : शारीरिक स्मृति का माया-जाल

👉इस तेजी से बदलती दुनिया में प्रतिबद्ध व समर्पित रिश्तों की क्या भूमिका है? वे किसने जरूरी हैं? क्या प्रतिबद्धता अपनी उपयोगिता खो चुकी है? क्या उसकी प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है?

👉ये सवाल मुझसे अक्सर पछे जाते हैं। ये सामाजिक सवाल हैं, लेकिन इस कर्म का एक बहुत शाश्वत पहल शामिल है। प्रतिबद्ध रिश्ते और शादी, सामाजिद व्यवस्थाएँ हैं। ये सामाजिक तौर पर मूल्यवान हैं, और मानव शरीर की याद रखने की क्षमता असाधारण है। मानव जीवन के लिए इस याद्दाश्त के नतीजे भी जबदरदर होते हैं।

👉यह कोई नैतिक तर्क नहीं है। यह बहत ही सरल समझ पर आधारित है। आपका शरीर स्मृति से भरा हुआ है: इसकी हर चीज प्रोग्रामिंग का नतीजा है, इसके रूप और रंग से लेकर इसकी बनावट और आकार तक।

👉 यही कारण है कि आपकी परदाद के घुटनों की गठिया की समस्या आप में भी है और आपको अपने पूर्वज बंदरों की आदतों से छुटकारा पाना मुश्किल लगता है! (मत भूलिए कि एक इंसान और एक चिंपांजी के डीएनए में 98.6 प्रतिशत समानता है!)

👉अब, शरीर की स्मृति उन सभी स्तरों पर काम करती है, जिनकी चर्चा हमने इस अध्याय में पहले की है। इस स्मृति का एक बहुत महत्वपूर्ण और बड़ा पहलू शारीरिक है (मनोवैज्ञानिक और ऊर्जा से अलग)। संस्कृत में, शरीर की इस भौतिक याद्दाश्त को ऋणानुबंध कहा जाता है।

👉 ऋणानुबंध वह शारीरिक स्मृति है जो आपके अंदर रहती है। जैसा कि हमने पहले देखा है, यह रक्त संबंधों का नतीजा है, और अहम बात ये है कि ये यौन संबंध का नतीजा भी हैं।

👉जहाँ भी शारीरिक निकटता होती है- खासकर यौन संबंध जैसी- वहाँ शरीर उस स्मृति को गहराई से महसूस करता है। और इसलिए किसी भी समाज में प्रतिबद्ध संबंधों की व्यवस्था एक गहन बुद्धिमत्ता (इन्टेलिजैन्स) पर आधारित थी।

👉 इसका तर्क सरल है: चूँकि किसी भी शारीरिक संपर्क में स्मृति का एक महत्वपूर्ण आदान-प्रदान होता है, अगर आपके शरीर की याद्दाश्त बहुत अधिक शारीरिक छापों में उलझती है, तो आपका सिस्टम 'भ्रमित हो जाता है। 

👉जब आपकी शरीर की याद्दाश्त का सिस्टम जटिल बन जाता है, तो आपके जीवन को व्यवस्थित होने में बहुत मेहनत लग सकती है।

👉इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि ऋणानुबंध में कुछ भी गलत नहीं है। यह जीवन का एक जरूरी हिस्सा है। उदाहरण के लिए, एक दंपति के बीच ऋणानुबंध के बिना भावी पीढ़ी संभव नहीं है।

👉 एक माँ और बच्चे के बीच ऋणानुबंध के बिना, बच्चाजीवित नहीं रह सकता। हालाँकि, सवाल सिर्फ यह है कि इसे एक उलझन बनाने के बजाय सहायक कैसे बनाया जाए; यह कैसे पक्का करें कि कोई रिश्ता एक बंधन में न बदल जाए?

👉आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले किसी व्यक्ति के लिए, ऋणानुबंध को सरल बनाना खासतौर पर आवश्यक हो जाता है, क्योंकि साधक का अंतिम उद्देश्य भौतिकता से परे जाना होता है। 

👉अगर कोई ऐसा इरादा रखता है, तो शरीर को बहुत ज्यादा स्मृति के बोझ से मुक्त रखना और एक सरल प्रक्रिया की तरह ही रखना बुद्धिमानी है। जब शारीरिक स्मृति को कम-से-कम रखा जाता है, तब अध्यात्म के द्वार खुलने शुरू हो सकते हैं।

👉शारीरिक स्मृति के कई परिणाम होते हैं। यौन संबध लोगों के बीच सबसे ज्यादा ऋणानुबंध पैदा करते हैं। इस आदान-प्रदान में महिला का शरीर अधिक ग्रहणशील होने के कारण शारीरिक अंतरंगता को पुरुष के मुकाबले ज्यादा गहराई से महसूस करता है।

 👉जब महिला बच्चे को जन्म देती है, तो इस स्मृति का एक बड़ा हिस्सा उसकी संतान में चला जाता है। यह एक आम तौर पर देखी जाने वाली चीज को स्पष्ट करता है: जब एक महिला गर्भवती होती है, तो उसके साथी का होना अक्सर उसके जीवन में कम महत्वपूर्ण हो जाता है।

👉 ऐसा इसलिए है, क्योंकि एक नई पीढ़ी के निर्माण के लिए जेनेटिक और शारीरिक कर्म के संदर्भ में, स्मृति का एक गहरा स्थानांतरण हो रहा होता है। 

👉उसमें अपने साथी के प्रति पहले वाली ग्रहणशीलता नहीं होती, अब वह अपनी संतान में शारीरिक स्मृति को संप्रेषित करने वाली एक नई भूमिका में होती है।

👉महिलाओं को अक्सर यह पता चलता है- जब वे गर्भवती होती हैं तो अपने माता-पिता के लिए और जो लोग उनके लिए बहुत करीबी थे, उनके लिए उनकी भावनाओं की गहराई कम होने लगती है। 

👉दूसरे रिश्तों में भावनात्मक लगाव का स्तर अक्सर कम होने लगता है। इस समय प्रकृति की प्रणाली काम कर रही होती है: अगर शरीर अपने माता-पिता को ज्यादा याद रखेगा तो वह नए बच्चे को, जो अलग जेनेटिक सामग्री का है, अच्छी तरह नहीं अपना पाएगा। अगर स्मृति बहुत ज्यादा होगी तो शरीर के भीतर संघर्ष होगा।

👉जैसा कि हमने देखा, संस्कृत शब्द कुल-वेदना (सामूहिक पीड़ा) का अर्थ है कि पूरे कुल की स्मृति आपके अंदर मौजूद रहती है।
 
👉आपका शरीर एक खास तरह से बर्ताव करता है, क्योंकि वह इन गहरी शारीरिक स्मृतियों को अपने साथ लेकर चल रहा है। जिसमें आपके लोगों, आपके कुल की पीड़ा एकलित है। अगर और अधिक ऋणानुबंध के साथ आप अपने सिस्टम को जटिल बनाते हैं, तो आपको पीड़ा बहुत ज्यादा हो सकती है।

💥जब मृतक आपके जरिए जीते हैं💥

जब मृतक आपके जरिए जीते हैं

🎉हाल ही में लॉस एंजिल्स में आयोजित एक कार्यक्रम में, मैंने चार महिला प्रतिभागियों को देखा जो एक जैसी दिखती थीं। वे बहनें नहीं थीं। बस उनकी डॉक्टर एक ही थी ! तो, ऐसे कारगर तरीके मौजूद हैं जिनसे हम आज अपनी आनुवांशिकता को नया रूप दे सकते हैं।

🎉भारत में, पारंपरिक रूप से संस्कार शब्द का इस्तेमाल हमारे वर्तमान पर हमारी आनुवांशिक स्मृति के स्थायी असर को बताने के लिए किया जाता है। आपका शरीर वास्तव में आपके मन की तुलना में एक खरब गुना ज्यादा स्मृति रखता है। संस्कार शब्द वंशगत स्मृतियों और छापों के भंडार को दिखाता है, जो हमें हमारे पूर्वजों, हमारे वंश या हमारी जाति से विरासत में मिले हैं।

🎉और इसलिए, जब कोई बच्चा बहुत ही अच्छा गाता है, तो लोगों का यह कहना आम बात है, 'वाह, क्या संस्कार हैं इस बच्चे के !' इसका मतलब है कि यह विशेष उपहार बच्चे को उसके जीन-पूल, उसके पैतृक ज्ञान से मिला है।

🎉ये आनुवांशिक स्मृतियाँ अपने आप में सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होर्ती । फर्क इस बात से पड़ता है कि हम उन्हें कैसे संभालते हैं। हमारे पूर्वजों की स्मृतियाँ हमारे भीतर मौजूद रहती हैं। लेकिन यह स्मृति बंधन का कारण बन गई है या हमारे लिए फायदेमंद है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमने उससे कितनी दूरी बनाई है।

🎉मृत लोग अलग-अलग तरीकों से आपके माध्यम से जीने की कोशिश करते हैं। इसे समझने में गलती मत कीजिए। अपने या आस-पास के लोगों के जीवन कोदेखिए। कई लोगों के लिए बच्चे पैदा करना अपने देश को आगे बढ़ाना या दंशার चीजों को अमर बनाने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना है कि वे मरने के बाद भी जीवित रहेंगे। इससे वे भावी पीढ़ियों तक जिंदा रहने की उम्मीद करते हैं। 

🎉तो अपने पूर्वजों को भी कम मत समझिए। वे भी आपके जरिए जीने की कोशिश कर रहे हैं। यह खुद को कायम रखने की वंशानुगत स्मृति की प्रकति है। हम अपने पूर्वजों के बहुत ऋणी हैं। लेकिन अगर हमें इस धरती पर एक आजाद, पूर्ण रूप से विकसित जीवन जीना है- अपने पूर्वजों की कठपुतली बनकर नहीं रहना है तो हमें पहले एक स्वर्तन व्यक्ति बनने के तरीके खोजने चाहिए।

🎉आध्यात्मिक प्रक्रिया पृथकता या अलग होने के भ्रम को तोड़ती है। इस मार्ग पर चलने का मतलब है, एक व्यक्ति (इंडिविजुअल) बनना। यह एक विरोधाभास लग सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं। जब आप कई प्रभावों का परिणाम होते हैं, तो आप एक भीड़ की तरह होते हैं। जब आप भीड़ का या प्रभावों का पुलिंदा होते हैं, तो रूपांतरण असंभव है। भीड़ समय के साथ विकास कर सकती है, लेकिन उसे रूपांतरित नहीं किया जा सकता।

🎉 जैसा कि रूपांतरण शब्द से पता चलता है, उसके लिए एक रूप की जरूरत होती है। सिर्फ अकेले व्यक्ति को ही रूपांतरित किया जा सकता है, या वह पृथकता के साथ अपनी सैकरी पहचान के परे जा सकता है। एक झुंड के लिए कभी प्रबुद्ध होना संभव नहीं है। प्रबुद्धता सिर्फ अकेले व्यक्ति को प्राप्त हो सकती है।

🎉मैं अक्सर मजाक करता हूँ कि सिर्फ दो तरह के भूत होते हैं: बिना शरीर के भूत और शरीर वाले भूत! अधिकतर लोग शरीर वाले भूत हैं। संक्षेप में कहें तो, वे अपने अतीत की छाया हैं। उनका जीवन बस उनके पूर्वजों की स्मृति से बना होता है।

🎉संस्कार महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये हमें यह याद दिलाते हैं कि हम कई सूक्ष्म और गहरे स्तरों पर स्मृति से आकार लेते हैं, जिनके बारे में हमें पता भी नहीं होता। हो सकता है कि आप इसके प्रति सचेत न हों, लेकिन मनुष्य के भीतर कुछ ऐसा होता है जो इस आजादी के खोने पर अप्रसन्न होता है।

🎉जेल का जीवन इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। जब मैं जेलों में कार्यक्रम आयोजित कर रहा था, तब मैंने इसे अपनी आँखों से देखा है। जेलों के बारे में दिलचस्प बात यह है कि वहाँ लोग वास्तव में बहुत अच्छी तरह व्यवस्थित हो सकते हैं।

 🎉समय पर खाना मिलता है; आपको कपड़े और आश्रय दिया जाता है; आपके लिए बत्तियाँ जलाई और बंद की जाती हैं; आपके लिए दरवाजे खोले जाते हैं और हाँ, आपके अंदर आ जाने पर बंद भी कर दिए जाते हैं! जो लोग बाहर बहुत अभाव में जीवन जीते हैं, उनके लिए जेल एक व्यवस्थित विकल्प है। 

💥स्मृति की परतें💥



स्मृति की परतें

❤️‍🔥योग परंपरा में विभिन्न स्मृतियों में अंतर करने का एक विस्तृत तरीका है। यह स्मृति के आठ आयामों या 'परतों को अलग-अलग देखता है: तात्विक (एलेमेंटल), परमाणविक (एटॉमिक), विकास-मूलक (इवोल्यूशनरी), आनुवांशिक (जेनेटिक), कर्मगत (कार्मिक), संवेदी (सेंसरी), स्पष्ट (आर्टिकुलेट), और अस्पष्ट (इनआर्टिकुलेट)।

❤️‍🔥आठों को दरअसल मनुष्य के कर्म के रूप में देखा जा सकता है। पहली चार तरह की स्मृतियों में व्यक्तिगत इच्छा की कोई भूमिका नहीं होती। अगली चार वे हैं जिनमें व्यक्तिगत इच्छा की भूमिका होती है। दूसरे शब्दों में, पहली चार हमारे सामूहिक कर्म बनाती हैं; अगली चार हमारे व्यक्तिगत कर्म बनाती हैं।

❤️‍🔥चलिए स्मृति के पहले चार पहलुओं को देखते हैं, जिनमें निजी इच्छा कोई भूमिका नहीं निभातीः

❤️‍🔥तात्विक स्मृति : आपके सिस्टम का निर्माण करने वाले तत्व - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश - आपको आकार देते हैं। वे सृष्टि की शुरुआत से ही स्मृतियों को अपने साथ रखे हुए हैं।

❤️‍🔥परमाणविक स्मृति-आपके शरीर को बनाने वाले परमाणुओं के बदलते पैटर्न- आपके सिस्टम को और आगे ढालते हैं।

❤️‍🔥विकास-मूलक स्मृति आपकी बायलॉजी को निखारती है: उदाहरण के लिए यह विकास-मूलक सॉफ्टवेयर है. जो आपको एक इंसान बनाता है, जानवर नहीं। चाहे आप डॉग-फूड खाएँ, तो भी आप इंसान ही रहेंगे! यह विकासगत कोड आपके डीएनए पर गहराई से अंकित है।

❤️‍🔥आपका शरीर वैसे भी क्या है? यह सिर्फ भोजन, पानी और हवा है. ये सभी आपको घरती ने दिया है। जिस पदार्थ को आप धरती कहते हैं और जिस पदार्थ को आप शरीर कहते हैं, वे अलग-अलग नहीं हैं

 ❤️‍🔥लेकिन स्मृतियों का एक जटिल मिश्रण उस पदार्थ को इस तरह से अलग-अलग करके देखता है कि वह पहचान में नहीं आता। वही मिट्टी भोजन बनाती है और जब आप उसे खाते हैं, तो वह आपका पोषण करती है, और आपको एक पौधा या जानवर बनाने के बजाय इंसान बनाती है। इस जीवन में मनुष्य होने का सौभाग्य मुख्य रूप से विकास-मूलक स्मृति के कारण है।

❤️‍🔥पानी, हवा, और भोजन के यही बाहरी तत्व हर इंसान के अंदर अलग-अलग बर्ताव करते हैं। जैसे ही आप उन्हें अंदर डालते हैं, वे बहुत अलग तरीके से काम करना शुरु कर देते हैं।

 ❤️‍🔥बोतल के अंदर मौजूद पानी, आपके अंदर जाते ही बहुत अलग होता है। बाहर मौजूद फल आपके अंदर जाकर बहुत अलग तरह से काम करता है। यह रूपांतरण मुख्य रूप से आपके भीतर परमाणविक, तात्विक और विकास-मूलक स्मृति की परस्पर क्रिया के कारण होता है।

❤️‍🔥स्मृति के कुछ खास आयाम हम सभी में हैं: तात्विक, परमाणविक और विकास-मूलक। लेकिन, हमारे आनुवांशिक और व्यक्तिगत कर्म अलग होते हैं। आनुवांशिक स्मृति परिवार से आती है, जो हमारे कई एक जैसे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों को तय करती है।

❤️‍🔥अब बात करते हैं उन चार स्मृतियों की जो हमारा सामूहिक कर्म बनाती हैं।

❤️‍🔥पहली है, हमारी निजी कर्म स्मृति: हमारे कर्मों की वे छाप जिसने समय के साथ हमें आकार दिया और अलग-अलग तरह का इंसान बनाया। हर व्यक्ति की अपनी विचित्नता और विशेषता, पसंद और नापसंद, आदतें और प्राथमिकताएँ होती हैं। 

❤️‍🔥हर इंसान में निजी कर्म-स्मृति का एक विशाल भंडार होता है। इसी कारण कोई भी दो मनुष्य, यहाँ तक कि जुड़वाँ भी, कभी पूरी तरह एक जैसे नहीं होते।

❤️‍🔥मौजूदा भौतिक और साँस्कृतिक वातावरण भी हमारे सिस्टम पर असर डालता है, जो तय करता है कि हमारा शरीर और मन दुनिया के प्रति कैसे रेस्पॉन्ड करेंगे और ये संवेदी स्मृति (सेंसरी मेमोरी) बनाते हैं।

👹कर्म की थैलियों के रूप में इंसान👹

कर्म की थैलियों के रूप में इंसान

😈जब मैं चार या पाँच साल का था, तो अक्सर मैं लोगों को धुंधली आकृतियों के रूप में देखता था। जब मैं बैठकर आस-पास अपने परिवार को देखता - मेरी माँ, पिता, भाई, बहनें - वे सब मुझे धुंधली आकृतियों के रूप में, भूतों की तरह, इधर-उधर घूमते दिखाई देते।

😈 जब मैं चल-फिर रहा होता या बात कर रहा होता था, तो वे मुझे इंसानों की तरह दिखाई देते थे। लेकिन अगर मैं सिर्फ यूँ ही बैठा होता, तो वे मुझे इधर-उधर तैरती हुई धुंधली आकृतियों जैसे नजर आते। 

😈और एक बार जब आप लोगों को आधे-ठोस धुंधले प्राणियों के रूप में देख लेते हैं, तो दैनिक जीवन का सारा ड्रामा एकदम अर्थहीन हो जाता है। 

😈अचानक, मेरे पिताजी आकर पूछते, 'तुम्हारी गणित की तिमाही परीक्षा का क्या हुआ?' मुझे कोई अंदाजा नहीं होता था कि वह किस बारे में बात कर रहे हैं! यह म्यूट बटन दबाकर टेलीविजन देखने जैसा था।

😈एक चीज जिसका मुझपर बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ, वह था किसी व्यक्ति का लिंग। यह चीज लंबे समय तक मेरे दिमाग में दर्ज नहीं होती थी। 

😈बड़े होने के बाद भी, मैंने कभी किसी व्यक्ति के शारीरिक आकार पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जिस चीज ने हमेशा मेरा ध्यान खींचा, वह था एक ज्यादा बड़ा और धुंधला आकार, जो मैं उनके चारों ओर देख सकता था।

😈 मैंने खुद कभी इन आकारों को समझने की जरूरत महसूस नहीं की। लेकिन मुझे बाद में एहसास हुआ कि ये ऊर्जा-शरीर के रूप थे, जो हर जीवित प्राणी के पास होते हैं। योग शब्दावली में, इसे प्राणमय-कोष कहते हैं। इस स्तर पर, अंकित कर्मों को साफ देख पाना संभव है।

😈इसे समझना मुश्किल हो सकता है। मेरा दिमाग कभी किसी ऐसी चीज को समझने का इच्छुक नहीं होता है, जो मैं देखता है। स्पष्ट रूप से समझने के लिए, मैं उस चीज को ज्यादा गौर से देखता हूँ, लेकिन मैं किसी चीज को बौद्धिक रूप से समझने की कोशिश नहीं करता।
 
😈अगर आप गहराई से देखना चाहते हैं, तो आप सिर्फ अपने बोघ को तेज करना सीखिए। 

😈उदाहरण के लिए, अगर आप किसी पेड़ को बहुत ध्यान से देखते हैं, तो आपको बागवानी का मैनुअल पढ़ने की जरूरत नहीं है- आप अंदाजा लगाकर बता सकते हैं कि उसे पर्याप्त धूप और पानी मिल रहे हैं या नहीं।

😈 (वेशक, आज यह एक विडंबना है कि कई लोग पेड़ को समझने की बजाय, पेड़ के नीचे बैठकर पेड़ों पर किताब पढ़ना ज्यादा ठीक समझते हैं!)

😈योग अनुशासन पूरा 'गौर से देखना' सीखने के बारे में ही है। इसीलिए मैं अपने आस-पास के लोगों से कहता रहता हूँ: कुछ भी मत खोजिए। जीवन का अर्थ मत खोजिए। भगवान की तलाश मत कीजिए। 

😈गौर से देखिए-बस इतना ही करना है। यह एक आध्यात्मिक साधक का मौलिक गुण है, क्योंकि जीवन का अर्थ है, जो मौजूद है उसे देखना, न कि उसे देखना जो आप देखना चाहते हैं।

😈चूँकि लोग अपने व्यक्तित्व के साथ, जो कि उनके कार्मिक तत्व द्वारा ही निर्मित होता है इतनी ज्यादा पहचान जोड़ कर रखते हैं कि उन्हें वही सीमाएँ नजर आती हैं।

😈 वे हर किसी को सीमित व्यक्ति के रूप में देखते हैं क्योंकि वे खुद को भी उसी रूप में देखते हैं। जीवन को केवल जीवन की तरह देखने के बजाय, वे इसके टुकड़ों से अपनी पहचान जोड़ते हैं।

😈अब मानव के लिए कर्म के विकृत करने वाले लेंस से परे जाने का समय आ गया है- यह एक ऐसा लेंस है जो उन्हें विकृत रूप को वास्तविकता की तरह दिखाता है, इस भव्य जीवन की बजाए खंडित और स्मृतियों से बने मनोवैज्ञानिक जीवन से भ्रमित करता है।

 😈इस सच्चाई के प्रति जागृत होने का यही समय है कि जीवन के अलावा इसका कुछ और होने का विश्वास अपराध है। दुर्भाग्य से, अपने व्यक्तित्व की हमारी सोच अपने अलग होने की भावना से आती है, और यही सारे दुखों का आधार है।

😈जिस तरह हर परमाणु में विशाल शक्ति छिपी हुई है (अकल्पनीय और विशाल स्तर पर विनाश करने के लिए पर्याप्त), उसी तरह मानव बुद्धिमत्ता (इन्टेलिजैन्स) को विचार और भावना के परमाणु रूपि स्तर पर तोड़ दिया गया है।

 😈ये पीड़ा और विनाश का स्रोत बन गए हैं। धरती माता से पूछिए - वह जरूर सहमत होंगी ! हमारी अलग पहचान ने इस शानदार सृष्टि को तोड़ कर रख दिया है और हमारे जीवन की सर्वव्यापकता को चकनाचूर कर दिया है।

💮स्मृति के रूप में कर्म💮

स्मृति के रूप में कर्म

जीवन के विरुद्ध सिर्फ एक ही अपराध होता है: यह विश्वास करना कि आप जीवन के अलावा कुछ और हैं।

स्मृति का विशाल भंडार

👍एक बार ऐसा हुआ...

🧘‍♀️एक दिन शंकरन पिल्लै अपनी बीवी से बहुत नाराज हो गए और घर से बाहर चले गए। पूरी रात सड़कों पर भटकने के बाद, वह नाश्ते के लिए एक रेस्तरां में पहुँचे। जब परोसने वाला उनकी मेज पर आया, तो वह बोले, 'मेरे लिए एक ठंडी, पतली कॉफी, ज्यादा नमक वाला सांभर और पत्थर की तरह सख्त इडली लेकर आओ।'

👍परोसने वाला हैरान रह गया, 'लेकिन सर, मैं आपको गर्मागर्म कड़क कॉफी, स्वादिष्ट सांभर और एकदम नर्म इडली परोस सकता हूँ।'

👍'मूर्ख कहीं के, तुम्हें क्या लगता है कि मैं यहाँ नाश्ते का मजा लेने आया हूँ?' शंकरन पिल्लै ने झुंझलाते हुए कहा, 'मुझे बस घर की याद आ रही है!'

👍अगर आपको एक बार किसी चीज की आदत लग जाए, चाहे वह सुखद हो या दुखद, अच्छी हो या बुरी, आप उसे छोड़ नहीं सकते, और फिर इस बात से फर्क नहीं पढ़ता कि वह क्या चीज है।

👍अगर इरादा या इच्छा कर्म को तय करती है, तो यह सवाल उठना लाजिमी है, कि आपकी इच्छा जागती कहाँ से है?

👍जैसा कि हमने देखा है, इसका संबंध आपकी अलग होने की पहचान से है। फिर यह पहचान कहाँ से उभरती है?स्मृति से।

👍आप यह मानते हैं कि आप एक व्यक्ति-विशेष हैं क्योंकि आपकी याद्दाश्त आपको बताती है कि आप एक व्यक्ति-विशेष हैं।

👍इसलिए शायद, कर्म को स्मृति के रूप में बताना ज्यादा सटीक और ज्यादा उपयोगी होगा।

👍जरा इसपर गौर कीजिए। आप खुद को जो कुछ भी मानते हैं, वह स्मृति का नतीजा है। जिसे आप 'मैं' कहते हैं, यह हर मायने में, आपके अतीत की ही एक उपज है।

👍इन पाँच इंद्रियों के जरिए आप जिन चीजों के संपर्क में आए हैं आपने जो भी देखा, सुना, सूँघा, चखा और छुआ वह आपकी याद्दाश्त में मौजूद है और आपके व्यक्तित्व पर असर डालता है। जागते हुए और सोते हुए आपने जो भी याद्दाश्त जमा की है, वह सब इस भंडार में है।

👍आप इसके प्रति चाहे जागरूक हों या न हो, आपके शरीर की हर कोशिका इसे याद रखती है और आपके जीवन का हर पल, उसी स्मृति से काम करता है। जीवन हर पल आपको आपके कर्म के बारे में बताता रहता है। समस्या यह है कि आप सिर्फ अपने विचारों को सुनते हैं या अपने पड़ोसियों को! अगर आप केवल जीवन प्रक्रिया की सुनते, तो किसी शिक्षा, किसी धर्मग्रंथ की जरूरत नहीं होती।

👍कर्म एक शोर बड़ा होता है। अगर आप इसे नहीं सुन सकते, तो ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि अभी आपको बाहरी दुनिया का शोर सुनने की आदत है। लेकिन एक बार जब आप अपनी आँतरिकता को सुनना सीख जाते हैं, तो आप कर्म के शोर को एकदम स्पष्ट सुन सकते हैं। वह शोर इतना तेज है, कि आप उससे चूक नहीं सकते !

👍आपका शरीर उस भोजन का एक ढेर है, जिसे आपने समय के साथ शरीर के अंदर डाला है। आपका मन उन छापों और विचारों का एक ढेर है, जिनका आपने समय के साथ मंथन किया है और आत्मसात किया है। दोनों ही अतीत का सृजन हैं। और दोनों ही स्मृति के उत्पाद हैं। तो आप चाहे अपने शरीर को अपनी पहचान बनाएँ या अपने मन को, जिसे आप आपका अपना व्यक्तित्व मानते हैं वह केवल स्मृति का एक ढेर है। हर चीज जिसे आप मैं मानते हैं उसका सार-तत्व कर्म है।

👍अभी, अगर आप अपने घर से थोड़ा दूर चलते हैं, तो सैंकड़ों अलग-अलग तरह की गंध को आप अपने आस-पास महसूस करते हैं। जरूरी नहीं है कि आप इन सबके प्रति सचेत हों। यदि कोई जब बहुत तेज गंध आपको आती है सिर्फ तभी उसपर आपका ध्यान जाएगा। लेकिन आपके नथुने जिन सैंकड़ों किस्मों की गंध के संपर्क में आए हैं, वे वास्तव में आपकी स्मृति में दर्ज हो गई हैं।

⭐🏋️🌰साधना - 2⭐👍🌰

साधना - 2

अगर आप स्व-संचालित होना चाहते हैं, तो सबसे पहले इसका इरादा पक्का कर लेना महत्वपूर्ण होता है। 

अपने इरादे को जितना हो सके, उतना सर्व-समावेशी बनाएँ। एक सरल संकल्प से शुरू कीजिए। दुनिया के लिए अपने भीतर माँ जैसी ममता रखिए। 

यानी सबको अपने की तरह देखना। ऐसा कोई नहीं है जो आपके कुल का हिस्सा नहीं है। 

जब आप सड़क पर चल रहे होते हैं, तो क्या आप हर किसी को उसी मधुर भावना से देखते हैं, 

जो आपके भीतर अपने बच्चे को स्कूल से घर आते देखकर आती है? यह इरादा ही आपको बेचैनी और नकारात्मकता से मुक्त कर सकता है और आप अपनी नियति खुद गढ़ सकते हैं।

अगर आप हर पल जागरूक हैं और समझते हैं कि इस धरती पर हर चीज और हर कोई आपका अपना है, तो आपको कोई कानून जानने की जरूरत नहीं है 

कि आपको क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए।

 आपने अपनी मौलिक पहचान बदल ली है। 

अब आपके कर्म की सीमाएँ टूट जाती हैं और आप असीमता की भावना का अनुभव करते हैं। 

समावेश और सहभागिता आपकी एक नई पहचान बन जाती है।

भारतीय पौराणिक कथाओं में मार्कंडेय की कहानी, अपना जीवन अपने हाथ में लेने के दृढ़ संकल्प की एक मिसाल है। उनकी जल्द मृत्यु की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन इस बहादुर युवक ने अपनी मृत्यु पर जीत हासिल की।

 हालाँकि उन्होंने अपनी मृत्यु पर काबू पाने के लिए कृपा माँगी, लेकिन उस कृपा के लिए उपलब्ध होना सीखना भी कर्म है। आध्यात्मिक होने का यही अर्थ है।

 इसका मतलब है कि अब आप जीवन और मृत्यु की प्रक्रिया को अपने हाथ में लेने को इच्छुक हैं। इसका मतलब है कि अब आप स्वयं से कहते हैं: 'इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरे पूर्वज कौन थे, या मेरा कर्म तत्व क्या है? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरा अतीत क्या रहा है।

 मैंने अपनी मुक्ति का, अपने जाने का रास्ता तय कर लिया है। मैंने ठान लिया है कि मैं अपनी मुक्ति की तरफ बढ़ रहा हूँ।'

वैसे भी जन्मकुंडली का मतलब संभावित बाधाओं से गुजरने का सिर्फ एक तरीका था।

 यह कभी भी ऐसा जीवन आलेख नहीं था, जिसका आँख बंद करके पालन किया जाए। 

वास्तव में, अगर आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं, तो सच्चे ज्योतिषी कभी भी आपके लिए भविष्यवाणी नहीं करेंगे।

 आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि आप अपनी नियति खुद बनाने को प्रतिबद्ध हैं।

 जब आप ऐसे एक रास्ते पर होते हैं, तो आप दरअसल दुनिया से यह कह रहे होते हैं, 'मैं हवा की दिशा में नहीं बहता। मैं स्व-संचालित हूँ।'

💕भाग्य और ज्योतिष पर तर्क-वितर्क💕



भाग्य और ज्योतिष पर तर्क-वितर्क

😭तो भाग्य, नियति, किस्मत के बारे में आप क्या कहेंगे? क्या ये हमारे जीवन को तय करने में कोई भूमिका निभाते हैं? क्या कर्म की हमारी समझ के लिए ये शब्द महत्वपूर्ण है? क्या ये शब्द कर्म के बारे में समझाते हैं?

😭आइए कुछ भ्रांतिओं को पहले तोड़ते हैं। जिसे आप भाग्य कहते हैं, वह सिर्फ एक जीवन-स्थिति है जिसे आपने अनजाने में खुद के लिए बनाया है। आपका भाग्य वह है जो आपने अनजाने में गढ़ा है। 

😭अगर आप सौ फीसदी सचेतन हो जाते हैं, तो आपकी नियति एक सचेतन रचना होगी। अगर आप अचेतन रहते हैं, तो आप अपनी दुर्दशा के लिए भाग्य और विधाता जैसे शब्दों का सहारा लेते हैं। यह इतना ही सरल है।

😭हमारे किए गए हर कार्य का एक परिणाम होता है। वह परिणाम चाहे आज फल दे या कल या दस साल बाद, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

😭 बात इतनी है कि वह हमेशा किसी-न-किसी रूप में फल देता है। तो, कई साल पहले आपने अनजाने में कुछ काम किए थे, उनका परिणाम आज सामने आ सकता है। 

😭आप इसे भाग्य कह सकते हैं। लेकिन आप इसे अपना कर्म, अपनी जिम्मेदारी भी कह सकते हैं।

😭अगर अभी आपको हाइपरटेंशन बीमारी का पता चला है, तो आप सोच सकते हैं, 'ओह, मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? मैं ही क्यों? मेरा पड़ोसी क्यों नहीं?' अधिकांश लोग यह स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष अपना आपा खोते हुए बिताए हैं। 

😭आधुनिक समाज में, दिन में पाँच बार गुस्सा करना बिलकुल स्वाभाविक माना जाता है! लोग हमेशा ऐसे कारण ढूँढ़ लेते हैं जो पूरी तरह से उचित लगते हैं।

 😭लेकिन सालों तक हर दिन ऐसा करने के बाद, अगर इतने सारे लोगों को उच्च रक्तचाप कि समस्या हो जाती है तो इसमें हैरानी कि क्या बात है? अपनी धरती को प्रदूषित करने और जीवन शैली को बदलने से इन्कार करने के सालों बाद, क्या
या कर दिया करने में
                          यही है।

😭यह कोई आश्चर्य की बात है कि आज हमारी दुनिया में इतनी सारी बीमारियाँ फैली हुई है? क्या हम इसके लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार नहीं है? सच्चाई यह है कि लोग अपना जीवन खुद बनाते हैं और समाज अपने विनाश की कहानी खुद लिखता है। 

😭लेकिन उसके बाद हम भगवान या नियति को दोष देने की कोशिश करते हैं। यह सुविधाजनक हो सकता है, लेकिन यह जीवन जीने का एक मूर्खतापूर्ण और अपरिपक्क तरीका है।

😭चूँकि भाग्य आपका अचेतन सृजन है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आपके जीवन का हर पहलू चेतनापूर्वक घटित हो। 

😭वरना आपको इसका पता भी नहीं चलेगा कि आप अपने जीवन में जहर घोल रहे हैं और खुद को क्या नुकसान पहुँचा रहे हैं।

😭यह हमें इससे जुड़े एक सवाल पर ले आता है अगर हम अपना जीवन-क्रम खुद तय करते हैं, तो फिर ज्योतिष इसमें कहाँ आता है? उन सभी लोगों का क्या, जिनके भविष्य के बारे में आश्चर्यजनक रूप से सटीक भविष्यवाणियाँ की गई हैं?

😭 जन्मपत्नियों या 'हॉरर-स्कोप' की, जैसा कि मैं उन्हें कहता हूँ, इतनी अहमियत क्यों है कि तमाम लोग उनके मुताबिक अपना जीवन जीते हैं? अगर भाग्य बताने का काम इतनी सदियों से चला आ रहा है, तो उसमें थोड़ी सच्चाई तो होगी?

😭अब, ज्योतिष एक व्यक्ति के जीवन में बस कुछ खास संभावनाओं और रूपरेखाओं को बताने का एक तरीका है। अगर मैं आपको देखता हूँ, तो चूँकि आपके कर्म की दिशा मुझे तुरंत स्पष्ट हो जाती है, तो मैं कह पाता हूँ, 'ठीक है, आपकी स्वाभाविक प्रवृत्तियों को देखते हुए आपका जीवन इस दिशा में बढ़ेगा।' 

😭इसमें कुछ भी गहन नहीं है। ज्योतिष आपके जीवन के लिए बस एक संभावित रूपरेखा है, जो आपकी प्रवृत्तियों और विरासत में मिले लक्षणों को ध्यान में रखती है।

😭लेकिन इस स्थिति पर विचार कीजिए। एक हजार साल पहले, अगर आप एक नाविक होते और हवाएँ पूरब की तरफ चल रही होतीं, तो आप पूरब की तरफ जाते।

 😭भले ही आप अमेरिका जाना चाहते, लेकिन आप जापान पहुँच जाते। ऐसा होना तय था। हवाएँ आपकी मंजिल तय करती थीं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। हवाएँ चाहे जिधर से भी बहें, हम आज सुनिश्चित दिशा की तरफ ही जाते हैं! हम अपना जीवन खुद चलाते हैं।

 😭हम हवाओं को खुद को इधर या उधर नहीं धकेलने देते या दिशा तय करने नहीं देते। इसी तरह, जीवन प्रक्रिया में, अगर आप अपनी दिशा खुद तय करते हैं, तो हम कहते हैं कि आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। 

😭अगर आप अपनी संचित प्रवृत्तियों, अपनी आदतों और अपने पूर्वाग्रहों से यहाँ-वहाँ धकेले जाते हैं, तब आप अपने 'हॉरर-स्कोप' की दया पर निर्भर होते हैं!

💜कुल वेदना : सामूहिक कर्म का भार💜



कुल वेदना : सामूहिक कर्म का भार

😶अब, क्या सामूहिक कर्म जैसी कोई चीज है? क्या माता-पिता का दुःख बच्चे तक जाता है? कुछ वंश या कुल और समुदाय दूसरों के मुकाबले ज्यादा दुख या पीड़ा क्यों सहते हैं?

😶हमारे कार्य केवल व्यक्तिगत नहीं होते हैं। हम जो करते हैं, उसका असर कई दूसरे लोगों पर भी पड़ सकता है

 😶हमारे विवेकपूर्ण और मूर्खतापूर्ण कार्यों के सामूहिक नतीजे होते हैं। अगर हम पहाड़ों में ऊँची जगह पर रहना चुनते हैं, तो जंगली जानवरों के कर्म हम पर ज्यादा असर डाल सकते हैं!

😶 लेकिन चूँकि हमने सामाजिक परिस्थितियों में लोगों के बीच रहना चुना है, तो दूसरे लोगों के इरादे और कार्य हमें प्रभावित करते हैं। और यह हमारा सामूहिक कर्म बन जाता है।

😶कुल वेदना को समझें। यह सामूहिक पीड़ा, एक परिवार, एक कुल या एक समुदाय की पीड़ा को दर्शाती है।

 😶इसका मतलब है कि आपके भीतर की पीड़ा सिर्फ आपके व्यक्तिगत अतीत से नहीं आती है। यह आपके पूर्वजों से भी आती है और आपकी आने वाली पीढ़ियों तक भी पहुँचती है।

😶यही कारण है कि पारंपरिक समाजों ने अंतर्विवाह के मामले में बहुत सख्त सीमाएँ तय की हुई थीं।

😶 ये सीमाएँ बाद में रूढ़िवाद और सामाजिक भेदभाव में बदल गईं, और आज की दुनिया में वे प्रासंगिक नहीं हैं।

 😶हालाँकि, उनका मूल एक तरह की समझ में निहित था। इस मामले की जड़ सिर्फ आनुवंशिकी के बारे में नहीं थी। 

😶यह इस समझ पर आधारित था कि आपकी ऊर्जा पर छपी कर्म स्मृति आपके बच्चों तक पहुँचती है और इस तरह पीड़ा को जारी रखती है। 

😶इसका मतलब है कि आप उस तरह के कर्म बना रहे हैं जिनका निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

💌हालाँकि आधुनिक दुनिया में इन तय सीमाओं की कोई जगह नहीं है, फिर 'भी बहुत से लोग, अनजाने में, इन सीमाओं की वजह से आने वाली पीढ़ियों के लिए अनकही पीड़ा पैदा कर रहे हैं।
💕 अक्सर यह खुद को धोखा देना होता है। इन लोगों को भले ही समाज के स्तंभ, गुणों की खान माना जाता है, लेकिन उनकी सोच या जीने का तरीका उनके बाद की पीढ़ियों में पीड़ा फैला रहा है। 

☀️अपनी अज्ञानता से, वे न केवल अपना, बल्कि अपनी अजन्मी संतानों का जीवन भी दूषित कर रहे हैं।

✍️आप कैसे रहते हैं, इसका असर सिर्फ आप पर ही नहीं पड़ता। पिछली पीढ़ियों अपने कर्मों से मुक्त हैं या नहीं, और आने वाली पीढ़ियाँ पीड़ा सहती हैं या नहीं, यह इस पर भी निर्भर करता है कि आप कैसे जीते हैं। 

💯आपको अपने जीवनकाल में जिस तरह की कृपा ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वह आपके पहले और बाद के लोगों के जीवन से भी जुड़ा है।

🧘‍♀️भारतीय पौराणिक ग्रंथों में उन राजाओं की कहानियाँ हैं जो राजाओं से नहीं, बल्कि ऋषियों से पैदा हुए थे। 

🧘‍♀️नियोग नाम की इस प्रथा में, रानी अपने पति के बजाय एक ऋषि के साथ बच्चा पैदा करती थी।

🍁 ऐसा राजा की पूरी जानकारी में किया जाता था। इसका मकसद परिवार के भीतर पीड़ा की कड़ी को तोड़ना था। 

🧘‍♀️राजा नहीं चाहता था कि उसके बच्चे उसके सारे नकारात्मक कर्मों को विरासत में लें; वह खुद जैसा बेटा पैदा कर सकता था, उससे बेहतर बेटा चाहता था। 

🍓आज यह हमारी सोच के बाहर हो सकता है। लेकिन यह इस साधारण सोच पर आधारित था कि एक राज्य को एक बेहतरीन शासक मिलना चाहिए।

😃 राजा नहीं चाहता था कि उसकी अपनी पीड़ा, लालच, इच्छा के जहर का बोझ उसकी संतान पर पड़े।

 😄वह अपनी जनता का कल्याण चाहता था। जाहिर है, कि यह प्रथा आधुनिक समय के लिए पुरानी और अप्रासंगिक है, क्योंकि हमने अपने नेताओं को चुनने के लोकतांत्रिक तरीके खोज लिए हैं।

 😅लेकिन उस समय यह जीवन की एक खास समझ पर आधारित था।

😁आप एक दर्शक के रूप में कोई फिल्म देखने जातें हैं- आप हँस सकते हैं, रो सकते हैं, अपना पॉपकॉर्न खाकर बाहर आ सकते हैं। लेकिन फिल्म निर्माता पूरे नाटक को अलग ढंग से देखते हैं। 

😄वे जानते हैं कि फिल्म कैसे बनती है; वे इसके पीछे के कौशल और तकनीक को जानते हैं। 

😶एक साधारण फिल्म देखने वाला यह कभी नहीं समझ पाएगा कि फिल्म कैसे बनाई गई है।

 😭जीवन पर भी यही लागू होता है। आपका और निर्माता का नजरिया अलग होगा, जो निर्माता के लिए कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है, वह आपके लिए अजीब हो सकता है।

😭 प्राचीन परंपराएँ इस ज्ञान से विकसित हुई थीं कि जीवन कैसे कार्य करता है, और उस समझ से निकली कुछ प्रथाएँ आज हमें अजीब लग सकती हैं।

🌳कुछ लोग दूसरों के मुकाबले अधिक कष्ट क्यों उठाते हैं🌳



कुछ लोग दूसरों के मुकाबले अधिक कष्ट क्यों उठाते हैं?

💜सृष्टि ने हर किसी को एक जैसा क्यों नहीं बनाया है? कुछ लोग विकलांग और दूसरे लोग सक्षम क्यों हैं? कुछ गरीब और दूसरे अमीर क्यों है? 

💜अगर ईश्वर है, तो उसने हर किसी को एक बराबर क्यों नहीं बनाया? हर किसी के कर्म सकारात्मक क्यों नहीं हो सकते? हर किसी के पास एक जैसा सॉफ्टवेयर क्यों नहीं हो सकता? इस सारी असमानता का क्या तुक है?


💜ये ऐसे सवाल हैं जो सदियों से इंसान को परेशान करते रहे हैं। अब जरा ठहरें और पूरी स्पष्टता के साथ इस पर विचार करें।

💜अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप देखेंगे कि मानवीय दुःख या पीड़ा का मुख्य कारण शारीरिक विकलांगता या गरीबी नहीं है। मनुष्य की पीड़ा का कारण वह खुद है।

💜आइए पहले दर्द और पीड़ा के बीच अंतर को समझते हैं। कष्ट या दर्द शारीरिक है। जब भी शरीर को कोई चोट लगती है तो दर्द होता है। 

💜दर्द आपके शरीर को सचेत करता है कि कुछ गड़बड़ है, और इस पर ध्यान देने की जरूरत है। 

💜दर्द उपयोगी है। वह आपको सावधान करता है। दूसरी ओर, दुःख या पीड़ा मनोवैज्ञानिक है। 

💜उसे आपने पैदा किया है। वह शत-प्रतिशत स्व-निर्मित है।

💜 आपके पास दर्द के लिए कोई विकल्प नहीं है, लेकिन दुःख के लिए आपके पास विकल्प जरूर है। आप हमेशा दुःखी न होना, चुन सकते हैं।

💜आइए इस पर करीब से नजर डालते हैं। हजारों साल पहले, दुनिया भर में लोग मामूली घरों में काफी खुशी से रहते थे।

 💜छोटे और मामूली घरों में रहना कोई बड़ी बात नहीं थी।

💜 आज समस्या यह है कि कोई एक बड़ी हवेली में रहता है, और दूसरा एक बेडरूम के अपार्टमेंट में। 

💜यही दूसरे व्यक्ति के दुख का कारण है।

💜 किसी के पास तीन कार है, और किसी दूसरे के पास एक। यह उस व्यक्ति के दुःख का कारण है। 

💜कोई इसलिए दुखी है, क्योंकि वह विदेश में छुट्टियाँ नहीं मना सकता।

💜भौतिक स्थिति इनके दुख का कारण नहीं है।

 💜यह उस स्थिति में उनकी प्रतिक्रिया है जो इनके दुख का कारण है। 

💜आपके साथ जो हो रहा है उसमें आपका कर्म नहीं है; आपका कर्म, आपके साथ जो हो रहा है, उसके प्रति रेस्पॉन्ड करने के आपके तरीके

❤️में है। इंसान लगभग हर चीज से दुखी होता है। कोई दुखी है क्योंकि वह कॉलेज नहीं जा सका। 

💜कोई दूसरा कॉलेज जाता है, और उसे पास करके बाहर नहीं आ पाता, यह उसके दुख का कारण है! किसी को नौकरी नहीं मिल पाती, तो वह दुखी है। 

💜किसी दूसरे को नौकरी मिल गई, अब वह नौकरी की चुनौतियों से दुखी है। 

💜कोई दुखी है क्योंकि उसकी शादी नहीं हुई, तो कोई शादी की वजह से यातना सह रहा है! किसी की संतान नहीं है, तो वह दुखी है। 

💜किसी के बच्चे हैं, और इसलिए वे लगातार संता

में हैं। तो आपका दुःख आपकी परिस्थितियों के कारण नहीं है। आपका दुःख, जिस तरह से आपने खुद को बनाया है, उसके कारण है। और इसी पर आपको ध्यान देने की जरूरत है।

💜लेकिन आप भाग्य और सौभाग्य के बारे में क्या कहेंगे? स्वतंत्न इच्छाशक्ति और नियति के बीच अंतहीन बहस के बारे में क्या कहेंगे? ये सवाल अभी भी कई लोगों

को परेशान करते हैं।

💜जब भी मुझसे ये सवाल पूछे जाते हैं, तो मैं पहले यही बताता हूँ कि यह बहस हमेशा के लिए चलती रह सकती है। क्या आप इस पर जीवनभर बहस करना चाहते हैं? जैसे मुर्गी पहले आई या अंडा, यह कभी न खत्म होने वाली बहस है।

💜एक बार ऐसा हुआ...

💜लगभग पच्चीस साल के बाद, शंकरन पिल्लै अपने कॉलेज के दोस्तों से मिले।

💜वे सब जश्न मनाने के लिए एक रेस्तरां में इकट्ठा हुए। उन्होंने खाना और ड्रिंक्स ऑर्डर किए। बातचीत के दौरान यह बहस शुरू हो गईः आपके ख्याल से कौन पहले आया

- मुर्गी या अंडा ?

💜जब हर कोई बहस करने में लगा था, तब शंकरन पिल्लै अपना ड्रिंक पीने और नाश्ता करने में मस्त थे। उनके दोस्तों ने उनसे पूछा, 'अरे, इतनी महत्वपूर्ण बहस में क्या तुम्हारी दिलचस्पी नहीं है? क्या तुम जानना नहीं चाहते क्या पहले आया-मुर्गी या अंडा?'

💜शंकरन पिल्लै ने मुँह उठाया और बोले, 'जिसका भी ऑर्डर तुमने पहले दिया

💜होगा, वही पहले आएगा।'

💜क्या आप वाकई अपना शेष जीवन स्वतंत्र इच्छा-शक्ति और नियति पर बहस करते

💜हुए बिताना चाहते हैं?

💜पूर्वी सभ्यता में, यह कहा जाता है, 'आपका जीवन ही आपका कर्म है।' इसका अर्थ है कि आप कितना कर्म अपने हाथ में ले सकते हैं यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितने सचेतन हो गए हैं। 

💜अगर आपको अपने शरीर पर महारत हासिल है, तो आपके जीवन और नियति का पंद्रह से बीस प्रतिशत आपके हाथ में होगा। अगर आपको अपनी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया पर अधिकार है, तो पचास से साठ प्रतिशत जीवन और नियति आपके हाथों में होगी।

💜 अगर अपनी जीवन ऊर्जा पर आपक महारत हो जाती है, तो आपका जीवन और नियति सौ प्रतिशत आपके हाथ में ह सकते हैं।

❤️‍🔥💖कार्य से बचना मतलब कर्म संचय को बढ़ाना❤️‍🔥💖

💫कार्य से बचना मतलब कर्म संचय को बढ़ाना

💫कर्म और इच्छा के बारे में एक और दुर्भाग्यपूर्ण गलतफहमी है।

💫चूँकि पसंद और नापसंद के बीच अंतहीन रूप से झूलते रहना, कर्म पैदा करता है, इसीलिए काम से बचने और अनासक्ति की फिलॉसफी लोकप्रिय होने लगी है।

 💫हमने देखा कि कैसे गौतम बुद्ध की इच्छाहीनता की शिक्षा का गलत अर्थ निकाला गया।

💫 ये सभी जीवन दर्शन और उल्टी-सीधी व्याख्याएँ एक ही इच्छा की वजह से पैदा होती है: कर्म से कैसे बचें।

💫विडंबना यह है कि आप कर्म से बचने की जितनी ज्यादा कोशिश करते हैं, उतनी ही तेजी से यह बढ़ता जाता है!

💫इंसान के उलझ जाने के डर की वजह से, जीवन से अलगाव के सिद्धांत विकसित हुए हैं।

💫 ये सिद्धांत इस बात को अनदेखा कर देते हैं कि एक सर्व-समावेशी, गहरी भागीदारी के बिना, कोई जीवन नहीं हो सकता।

 💫आखिरकार ये सिद्धांत, जीवन को ही नकार देते हैं।

💫अनासक्ति वै, विरक्ति या अलगाव के सिद्धांत दरअसल आनंदरहित हैं।

 💫उन्हें अपनाने से रोजमर्रा के जीवन में थोड़ा संतुलन और स्थिरता पैदा हो सकती हैं, पर वे मुक्ति की ओर नहीं ले जाते।

💫इनसे अक्सर ज्यादा कर्म संचित होते हैं। जो लोग जीवन को नकारने और अलगाव वाले इन सिद्धांतों पर अमल करते हैं, वे धीरे-धीरे खुद ही जीवनरहित हो जाते हैं। 

💫जीवनहीनता को आमंत्लित करना नकारात्मक कर्म है।

 जीवन का दमन करना निश्चित रूप से नकारात्मक कर्म है।

💫अब, दमन से हमारा क्या मतलब है? कुछ ऐसा करना जो आप नहीं करना चाहते हैं, जरूरी नहीं कि वह दमन हो।

💫 उदाहरण के लिए, कुछ परंपराओं में साधकों को किसी खास समय पर उपवास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

 💫यह दमन नहीं है। लोग अक्सर सोचते हैं कि किसी पल वे जो करना चाहते हैं, उसे न करना, दमन है। ऐसा नहीं है।

💫दमन का सीधा-सा मतलब है कि आप अधूरे मन से जीवन को अनुभव कर रहे हैं। 

💫पूरी तरह जीने का मतलब है, खुद को पूरी तरह से किसी चीज का अनुभव करने देना। 

💫अगर आप खुद को पूरी तरह से भूख का अनुभव करने देते हैं, तो वह शानदार और आजाद करने वाली होती है।

 💫अगर आप खुद को पूरी तरह से भोजन का अनुभव करने देते हैं, तो वह भी शानदार और आजाद करने वाला है। 

💫दुर्भाग्य से, लोग पूरी तरह न तो भूख का अनुभव करते हैं, न भोजन का। 

💫यदि आप किसी भी अनुभव से बचते हैं- चाहे वह कष्ट हो या सुख, दुःख या आनंद - वह एक बड़ा कर्म है।

💫 लेकिन अगर आप अनुभव का विरोध किए बिना उससे गुजरते हैं, तो कर्म विसर्जित होता है। 

💫यही कारण है कि महान भारतीय महाकाव्य महाभारत में कृष्ण कहते हैं कि सभी अपराधों में झिझक सबसे बड़ा अपराध है।

👉इच्छाओं की जड़👈

☑️इच्छाओं की जड़
तो कौन-सी चीज इंसान के इरादे या इच्छा को तय करती है?

☑️ ऐसा क्यों है कि कुछ
लोग समावेश की भावना या सबको शामिल करने की भावना से काम करते हैं,

☑️ जबकि
दूसरे लोग विशिष्टता की भावना से काम करते हैं?
इस पर ध्यान से विचार कीजिए।

 ☑️आप देखेंगे कि इरादा मूल रूप से आपके इस
विश्वास से आकार लेता है कि आप एक अलग प्राणी हैं—एक अलग इकाई हैं। 

☑️दूसरे
शब्दों में, यह आपके व्यक्तित्व के साथ आपकी पहचान है जो आपके इरादे को तय
करती है।

☑️मुख्य शब्द यहाँ पहचान है। अगर आप एक अलग इकाई के रूप में नहीं पहचाने
जाते या आप खुद को एक अलग इकाई नहीं मानते, तो आप कर्म जमा नहीं कर रहे
होंगे। 

☑️अगर आपकी पहचान सर्व-समावेशी होगी, तो यह कर्म-चक्र का अंत होगा।

☑️दुर्भाग्य से, व्यक्तित्व की संकीर्ण सोच उन्हें समावेशी नहीं बनाती, बल्कि दुनिया
से अलग करती है।

☑️ पसंद-नापसंद, आकर्षण और अरुचि के बीच अंतहीन झूलते
रहने की भावना, उनके अलगाव को और मजबूत कर देती है।

 ☑️समय के साथ पसंद
और नापसंद व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं और ज्यादा कर्म पैदा करते हैं।

 ☑️उनका
व्यक्तित्व सौभाग्य के बजाय जेल बन जाता है।
गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में खास तौर पर इच्छाहीनता पर जोर दिया,

☑️लेकिन बहुत से लोगों ने दुर्भाग्य से इच्छाहीनता का गलत अर्थ निकाल लिया।

 ☑️वह एक
असाधारण बोध वाले व्यक्ति थे जो अच्छी तरह जानते थे कि इच्छा के बिना अस्तित्व
नहीं हो सकता।

 ☑️फिर भी उन्होंने इच्छाहीनता पर ज़ोर दिया। ऐसा क्यों?
वह, आँतरिक लालसा के बजाय आंतरिक तृप्ति की अवस्था में काम करने के
महत्व की ओर इशारा कर रहे थे।

☑️ एक बार जब आप अपने अन्दर तृप्त हो जाते हैं, तो
आपका जीवन आनंद की अभिव्यक्ति बन जाता है, आपको उसका पीछा नहीं करना
पड़ता।

 ☑️आपकी इच्छा गायब नहीं होती; बल्कि, वह सचेतन बन जाती है।

 ☑️आपकी
इच्छा अब आपकी निजी पहचान या स्वार्थ के लिए ईंधन नहीं रहती।

 ☑️वह एक सचेतन
साधन बन जाती है, जिससे आप काम करते हैं। 

☑️ऐसे में अब आप सिर्फ खुद की ही
नहीं, बल्कि पूरी धरती की खुशहाली की इच्छा करेंगे।

☑️इच्छाओं की प्रकृति ही इन सबकी जड़ है। जब आप अपनी इच्छा को नियंत्रित
करना सीख जाते हैं, जब आपके और आपके मन के बीच एक दूरी बन जाती है, तो
आप बस फिर वही करते हैं जो उस पल और उस स्थिति के लिए जरूरी है।

☑️ आ⭐प इच्छा
के साथ खेलना सीख लेते हैं। इच्छाएँ अब “आप” के बारे में या आपसे जुड़ी नहीं रह
जातीं। अब आपका कर्म बंधन पूरी तरह से गायब हो जाता है।


☑️इंसान इच्छा से संबध कैसे तोड़े? बिना इच्छा के व्यक्तित्व कैसे बन सकता है?
तर्क सरल है : व्यक्तित्व एक भ्रम है। वह एक सोच है, अस्तित्वगत सच्चाई नहीं है।

☑️बुद्धिमत्ता (इन्टेलिजैन्स), जो सारी सृष्टि का आधार है, जब आप उसके सम्पर्क
में आते हैं, तो आपको एहसास होता है कि आप किसी चीज से अलग नहीं हैं।

⭐नृत्य का एक हिस्सा है। वह जानता है कि हवा, पानी, धूप, और धरती से लेन-देन
इस ब्रह्मांड से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। 

☑️आपका शरीर ब्रह्मांड के विशाल आणविक
हमने अज्ञानता से अपनी दुनिया को बाँट दिया है।

☑️किए बिना वह एक पल भी जीवित नहीं रहेगा। हालाँकि, आपका मन इसे नहीं
मानता; उसे यकीन है कि वह एक सीमित और अलग इकाई है। 

☑️इसलिए, इस सीमित
है। ऐसे अदूरदर्शी और संकीर्ण इरादे से प्रेरित किसी भी कार्य का मतलब कर्म है। 

☑️समझ के कारण कोई भी इरादा सृष्टि के स्रोत की मूलभूत संरचना के खिलाफ जाता

दू☑️सरे शब्दों में, एक बाध्यकारी अस्तित्व ।

कर्म का संचय'


'कर्म का संचय' आपके इरादे से तय होता है, न कि किसी दूसरे
पर उसके असर से ।

इसे एक और उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि आप चाकू से खेल रहे
हैं। 

वह संयोग से किसी को लग जाता है और वह मर जाता है। यह एक तरह का कर्म
है।

 एक दूसरी स्थिति में, सब्जी काटते समय आपकी किसी के साथ बहस हो जाती
है। 
गुस्से में आकर, आप उसे छुरा घोप देते हैं और वह मर जाता है। 

तीसरी स्थिति
में, आप किसी दुश्मन से निपटने की योजना बनाते हैं; उसका पीछा करते हैं और उसे
चाकू से गोद देते हैं।

 चौथी स्थिति में, आप किसी के साथ बहुत दोस्ताना बर्ताव करते
हुए उसे रात के खाने के लिए न्यौता देते हैं; भोजन के बाद, जब वह तृप्त होकर बैठा
होता है, तब आप उसका गला काट देते हैं। यह एक अलग तरह का कर्म है।

 पाँचवीं
स्थिति में, किसी व्यक्ति के साथ आपका व्यवहार एकदम सामान्य है, लेकिन अंदर-
ही-अंदर आप उसके लिए भयानक साजिश रचते रहते हैं।

पहले चार मामलों में, वही चीजें शामिल हैं: आप, दूसरा व्यक्ति, चाकू और एक
मौत। लेकिन सबके कर्म एक समान नहीं है।

 इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है
कि किस मामले में सबसे बुरे कर्म जमा होंगे। 

सबसे बुरे से मेरा मतलब सबसे अनैतिक
नहीं है, मेरा मतलब है कि कौन-सा मामला आपके लिए सबसे बुरा नतीजा पैदा करता
है। 

दूसरे व्यक्ति के लिए परिणाम वही है, लेकिन आप पर पड़ने वाला असर आपके
इरादे की प्रकृति से तय होता है।

 मतलब सिर्फ कार्य ही नहीं, बल्कि कड़वाहट और
घृणा का स्तर भी कर्म जमा करने का कारण बनता है।
पाँचवाँ मामला कर्म बढ़ाने और इकट्ठा करने के मामले में असल में सबसे खराब
है। 

पहले चार मामले ऐसी स्थितियों के बारे में हैं जिनमें दूसरे व्यक्ति के लिए परिणाम
एक जैसा है। 

पाँचवें में दूसरे व्यक्ति के लिए कोई परिणाम नहीं है। वह अपने कर्म से
मुक्त है, तो यह उसके लिए अच्छा है। 

लेकिन आपका कर्म बहुत मजबूत और गहरा
होता जाता है, क्योंकि यहाँ, आप अपने भीतर लाखों बार इस काम और भावना को
दोहरा रहे हैं।

 कड़वाहट और गुस्से में की गई हरकत या काम के गंभीर शारीरिक
परिणाम होंगे (जेल की सजा)। लेकिन कड़वाहट को अंदर-ही-अंदर बढ़ाने और कई
गुना होने देने के आंतरिक परिणाम और भी गहरे होंगे।

 एक निजी एजेंडे से प्रेरित
इरादा हमेशा बहुत ज्यादा कर्म अर्जित करता है।

 अगर आप एक ही ख्याल मन में
बार-बार दोहराते रहते हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें आपका कोई जबरदस्त ।

निजी फायदा शामिल है। हो सकता है कि आपको जेल की सजा न हो, लेकिन आपने
खुद को कैद कर लिया है!

यह दिलचस्प है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों की कानूनी व्यवस्थाएँ भीअपराध की सजा तय करते समय इरादे को ध्यान में रखती हैं। 

उदाहरण के लिए,
ठंडे दिमाग से योजना बनाकर की गई हत्या को, तैश में आकर की गई हत्या से काफी
अलग तरह से देखा जाता है।

लेकिन फिर भी, कर्म का परिणाम सजा नहीं है।

 परिणाम दरअसल बस जीवन
का अपना तरीका है उन कर्मों को संभालने का, जो आप लगातार पैदा कर रहे हैं।

अगर आप केवल नकारात्मक मानसिक कर्म करते हैं, तो भले ही कोई बाहरी नतीजा
न हो, लेकिन आप ज्यादा गहरी आँतरिक पीड़ा का अनुभव करते हैं।

"कर्म को संभालने” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि आपका जीवन
किसी सही और गलत व्यवस्था के अनुसार नहीं, बल्कि आपकी प्रवृत्ति के अनुसार
चल रहा है। 

जैसा आपका रुझान, वैसा आपका जीवन। कर्म कोई सजा या इनाम नहीं
है; यह सिर्फ एक प्रक्रिया है जिससे जीवन खुद को पूर्ण करने की कोशिश करता है।

इरादे का एक स्तर, जिससे कई लोग अनजान हैं, वह है ऊर्जा के स्तर पर
कार्य । 

जैसा कि हम जानते हैं, एक नकारात्मक विचार कर्म को पैदा कर सकता है
एक नकारात्मक विचार के साथ एक नकारात्मक भावना का अर्थ है, एक ज्यादा
गहरा कर्म। 

जब एक नकारात्मक विचार, नकारात्मक भावना और नकारात्मक बाहरी
कार्य मिलते हैं, तो और भी गहरा कर्म इकट्ठा होता है। 

जब नकारात्मक विचार और
नकारात्मक भावना बार-बार होने वाले मानसिक कार्य के साथ जुड़ जाते हैं, तो वह
कर्म और भी ज्यादा गहरा होता है। 

(जैसा कि हमने देखा, मन में किसी को हजार
अलग-अलग तरीकों से मारना, ढेर सारा कर्म इकट्ठा करता है।)