'कर्म का संचय' आपके इरादे से तय होता है, न कि किसी दूसरे
पर उसके असर से ।
इसे एक और उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि आप चाकू से खेल रहे
हैं।
वह संयोग से किसी को लग जाता है और वह मर जाता है। यह एक तरह का कर्म
है।
एक दूसरी स्थिति में, सब्जी काटते समय आपकी किसी के साथ बहस हो जाती
है।
गुस्से में आकर, आप उसे छुरा घोप देते हैं और वह मर जाता है।
तीसरी स्थिति
में, आप किसी दुश्मन से निपटने की योजना बनाते हैं; उसका पीछा करते हैं और उसे
चाकू से गोद देते हैं।
चौथी स्थिति में, आप किसी के साथ बहुत दोस्ताना बर्ताव करते
हुए उसे रात के खाने के लिए न्यौता देते हैं; भोजन के बाद, जब वह तृप्त होकर बैठा
होता है, तब आप उसका गला काट देते हैं। यह एक अलग तरह का कर्म है।
पाँचवीं
स्थिति में, किसी व्यक्ति के साथ आपका व्यवहार एकदम सामान्य है, लेकिन अंदर-
ही-अंदर आप उसके लिए भयानक साजिश रचते रहते हैं।
पहले चार मामलों में, वही चीजें शामिल हैं: आप, दूसरा व्यक्ति, चाकू और एक
मौत। लेकिन सबके कर्म एक समान नहीं है।
इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है
कि किस मामले में सबसे बुरे कर्म जमा होंगे।
सबसे बुरे से मेरा मतलब सबसे अनैतिक
नहीं है, मेरा मतलब है कि कौन-सा मामला आपके लिए सबसे बुरा नतीजा पैदा करता
है।
दूसरे व्यक्ति के लिए परिणाम वही है, लेकिन आप पर पड़ने वाला असर आपके
इरादे की प्रकृति से तय होता है।
मतलब सिर्फ कार्य ही नहीं, बल्कि कड़वाहट और
घृणा का स्तर भी कर्म जमा करने का कारण बनता है।
पाँचवाँ मामला कर्म बढ़ाने और इकट्ठा करने के मामले में असल में सबसे खराब
है।
पहले चार मामले ऐसी स्थितियों के बारे में हैं जिनमें दूसरे व्यक्ति के लिए परिणाम
एक जैसा है।
पाँचवें में दूसरे व्यक्ति के लिए कोई परिणाम नहीं है। वह अपने कर्म से
मुक्त है, तो यह उसके लिए अच्छा है।
लेकिन आपका कर्म बहुत मजबूत और गहरा
होता जाता है, क्योंकि यहाँ, आप अपने भीतर लाखों बार इस काम और भावना को
दोहरा रहे हैं।
कड़वाहट और गुस्से में की गई हरकत या काम के गंभीर शारीरिक
परिणाम होंगे (जेल की सजा)। लेकिन कड़वाहट को अंदर-ही-अंदर बढ़ाने और कई
गुना होने देने के आंतरिक परिणाम और भी गहरे होंगे।
एक निजी एजेंडे से प्रेरित
इरादा हमेशा बहुत ज्यादा कर्म अर्जित करता है।
अगर आप एक ही ख्याल मन में
बार-बार दोहराते रहते हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें आपका कोई जबरदस्त ।
निजी फायदा शामिल है। हो सकता है कि आपको जेल की सजा न हो, लेकिन आपने
खुद को कैद कर लिया है!
यह दिलचस्प है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों की कानूनी व्यवस्थाएँ भीअपराध की सजा तय करते समय इरादे को ध्यान में रखती हैं।
उदाहरण के लिए,
ठंडे दिमाग से योजना बनाकर की गई हत्या को, तैश में आकर की गई हत्या से काफी
अलग तरह से देखा जाता है।
लेकिन फिर भी, कर्म का परिणाम सजा नहीं है।
परिणाम दरअसल बस जीवन
का अपना तरीका है उन कर्मों को संभालने का, जो आप लगातार पैदा कर रहे हैं।
अगर आप केवल नकारात्मक मानसिक कर्म करते हैं, तो भले ही कोई बाहरी नतीजा
न हो, लेकिन आप ज्यादा गहरी आँतरिक पीड़ा का अनुभव करते हैं।
"कर्म को संभालने” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि आपका जीवन
किसी सही और गलत व्यवस्था के अनुसार नहीं, बल्कि आपकी प्रवृत्ति के अनुसार
चल रहा है।
जैसा आपका रुझान, वैसा आपका जीवन। कर्म कोई सजा या इनाम नहीं
है; यह सिर्फ एक प्रक्रिया है जिससे जीवन खुद को पूर्ण करने की कोशिश करता है।
इरादे का एक स्तर, जिससे कई लोग अनजान हैं, वह है ऊर्जा के स्तर पर
कार्य ।
जैसा कि हम जानते हैं, एक नकारात्मक विचार कर्म को पैदा कर सकता है
एक नकारात्मक विचार के साथ एक नकारात्मक भावना का अर्थ है, एक ज्यादा
गहरा कर्म।
जब एक नकारात्मक विचार, नकारात्मक भावना और नकारात्मक बाहरी
कार्य मिलते हैं, तो और भी गहरा कर्म इकट्ठा होता है।
जब नकारात्मक विचार और
नकारात्मक भावना बार-बार होने वाले मानसिक कार्य के साथ जुड़ जाते हैं, तो वह
कर्म और भी ज्यादा गहरा होता है।
(जैसा कि हमने देखा, मन में किसी को हजार
अलग-अलग तरीकों से मारना, ढेर सारा कर्म इकट्ठा करता है।)