👹कर्म की थैलियों के रूप में इंसान👹
कर्म की थैलियों के रूप में इंसान
😈जब मैं चार या पाँच साल का था, तो अक्सर मैं लोगों को धुंधली आकृतियों के रूप में देखता था। जब मैं बैठकर आस-पास अपने परिवार को देखता - मेरी माँ, पिता, भाई, बहनें - वे सब मुझे धुंधली आकृतियों के रूप में, भूतों की तरह, इधर-उधर घूमते दिखाई देते।
😈 जब मैं चल-फिर रहा होता या बात कर रहा होता था, तो वे मुझे इंसानों की तरह दिखाई देते थे। लेकिन अगर मैं सिर्फ यूँ ही बैठा होता, तो वे मुझे इधर-उधर तैरती हुई धुंधली आकृतियों जैसे नजर आते।
😈और एक बार जब आप लोगों को आधे-ठोस धुंधले प्राणियों के रूप में देख लेते हैं, तो दैनिक जीवन का सारा ड्रामा एकदम अर्थहीन हो जाता है।
😈अचानक, मेरे पिताजी आकर पूछते, 'तुम्हारी गणित की तिमाही परीक्षा का क्या हुआ?' मुझे कोई अंदाजा नहीं होता था कि वह किस बारे में बात कर रहे हैं! यह म्यूट बटन दबाकर टेलीविजन देखने जैसा था।
😈एक चीज जिसका मुझपर बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ, वह था किसी व्यक्ति का लिंग। यह चीज लंबे समय तक मेरे दिमाग में दर्ज नहीं होती थी।
😈बड़े होने के बाद भी, मैंने कभी किसी व्यक्ति के शारीरिक आकार पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जिस चीज ने हमेशा मेरा ध्यान खींचा, वह था एक ज्यादा बड़ा और धुंधला आकार, जो मैं उनके चारों ओर देख सकता था।
😈 मैंने खुद कभी इन आकारों को समझने की जरूरत महसूस नहीं की। लेकिन मुझे बाद में एहसास हुआ कि ये ऊर्जा-शरीर के रूप थे, जो हर जीवित प्राणी के पास होते हैं। योग शब्दावली में, इसे प्राणमय-कोष कहते हैं। इस स्तर पर, अंकित कर्मों को साफ देख पाना संभव है।
😈इसे समझना मुश्किल हो सकता है। मेरा दिमाग कभी किसी ऐसी चीज को समझने का इच्छुक नहीं होता है, जो मैं देखता है। स्पष्ट रूप से समझने के लिए, मैं उस चीज को ज्यादा गौर से देखता हूँ, लेकिन मैं किसी चीज को बौद्धिक रूप से समझने की कोशिश नहीं करता।
😈अगर आप गहराई से देखना चाहते हैं, तो आप सिर्फ अपने बोघ को तेज करना सीखिए।
😈उदाहरण के लिए, अगर आप किसी पेड़ को बहुत ध्यान से देखते हैं, तो आपको बागवानी का मैनुअल पढ़ने की जरूरत नहीं है- आप अंदाजा लगाकर बता सकते हैं कि उसे पर्याप्त धूप और पानी मिल रहे हैं या नहीं।
😈 (वेशक, आज यह एक विडंबना है कि कई लोग पेड़ को समझने की बजाय, पेड़ के नीचे बैठकर पेड़ों पर किताब पढ़ना ज्यादा ठीक समझते हैं!)
😈योग अनुशासन पूरा 'गौर से देखना' सीखने के बारे में ही है। इसीलिए मैं अपने आस-पास के लोगों से कहता रहता हूँ: कुछ भी मत खोजिए। जीवन का अर्थ मत खोजिए। भगवान की तलाश मत कीजिए।
😈गौर से देखिए-बस इतना ही करना है। यह एक आध्यात्मिक साधक का मौलिक गुण है, क्योंकि जीवन का अर्थ है, जो मौजूद है उसे देखना, न कि उसे देखना जो आप देखना चाहते हैं।
😈चूँकि लोग अपने व्यक्तित्व के साथ, जो कि उनके कार्मिक तत्व द्वारा ही निर्मित होता है इतनी ज्यादा पहचान जोड़ कर रखते हैं कि उन्हें वही सीमाएँ नजर आती हैं।
😈 वे हर किसी को सीमित व्यक्ति के रूप में देखते हैं क्योंकि वे खुद को भी उसी रूप में देखते हैं। जीवन को केवल जीवन की तरह देखने के बजाय, वे इसके टुकड़ों से अपनी पहचान जोड़ते हैं।
😈अब मानव के लिए कर्म के विकृत करने वाले लेंस से परे जाने का समय आ गया है- यह एक ऐसा लेंस है जो उन्हें विकृत रूप को वास्तविकता की तरह दिखाता है, इस भव्य जीवन की बजाए खंडित और स्मृतियों से बने मनोवैज्ञानिक जीवन से भ्रमित करता है।
😈इस सच्चाई के प्रति जागृत होने का यही समय है कि जीवन के अलावा इसका कुछ और होने का विश्वास अपराध है। दुर्भाग्य से, अपने व्यक्तित्व की हमारी सोच अपने अलग होने की भावना से आती है, और यही सारे दुखों का आधार है।
😈जिस तरह हर परमाणु में विशाल शक्ति छिपी हुई है (अकल्पनीय और विशाल स्तर पर विनाश करने के लिए पर्याप्त), उसी तरह मानव बुद्धिमत्ता (इन्टेलिजैन्स) को विचार और भावना के परमाणु रूपि स्तर पर तोड़ दिया गया है।


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