👉इच्छाओं की जड़👈
☑️इच्छाओं की जड़
तो कौन-सी चीज इंसान के इरादे या इच्छा को तय करती है?
☑️ ऐसा क्यों है कि कुछ
लोग समावेश की भावना या सबको शामिल करने की भावना से काम करते हैं,
☑️ जबकि
दूसरे लोग विशिष्टता की भावना से काम करते हैं?
इस पर ध्यान से विचार कीजिए।
☑️आप देखेंगे कि इरादा मूल रूप से आपके इस
विश्वास से आकार लेता है कि आप एक अलग प्राणी हैं—एक अलग इकाई हैं।
☑️दूसरे
शब्दों में, यह आपके व्यक्तित्व के साथ आपकी पहचान है जो आपके इरादे को तय
करती है।
☑️मुख्य शब्द यहाँ पहचान है। अगर आप एक अलग इकाई के रूप में नहीं पहचाने
जाते या आप खुद को एक अलग इकाई नहीं मानते, तो आप कर्म जमा नहीं कर रहे
होंगे।
☑️अगर आपकी पहचान सर्व-समावेशी होगी, तो यह कर्म-चक्र का अंत होगा।
☑️दुर्भाग्य से, व्यक्तित्व की संकीर्ण सोच उन्हें समावेशी नहीं बनाती, बल्कि दुनिया
से अलग करती है।
☑️ पसंद-नापसंद, आकर्षण और अरुचि के बीच अंतहीन झूलते
रहने की भावना, उनके अलगाव को और मजबूत कर देती है।
☑️समय के साथ पसंद
और नापसंद व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं और ज्यादा कर्म पैदा करते हैं।
☑️उनका
व्यक्तित्व सौभाग्य के बजाय जेल बन जाता है।
गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में खास तौर पर इच्छाहीनता पर जोर दिया,
☑️लेकिन बहुत से लोगों ने दुर्भाग्य से इच्छाहीनता का गलत अर्थ निकाल लिया।
☑️वह एक
असाधारण बोध वाले व्यक्ति थे जो अच्छी तरह जानते थे कि इच्छा के बिना अस्तित्व
नहीं हो सकता।
☑️फिर भी उन्होंने इच्छाहीनता पर ज़ोर दिया। ऐसा क्यों?
वह, आँतरिक लालसा के बजाय आंतरिक तृप्ति की अवस्था में काम करने के
महत्व की ओर इशारा कर रहे थे।
☑️ एक बार जब आप अपने अन्दर तृप्त हो जाते हैं, तो
आपका जीवन आनंद की अभिव्यक्ति बन जाता है, आपको उसका पीछा नहीं करना
पड़ता।
☑️आपकी इच्छा गायब नहीं होती; बल्कि, वह सचेतन बन जाती है।
☑️आपकी
इच्छा अब आपकी निजी पहचान या स्वार्थ के लिए ईंधन नहीं रहती।
☑️वह एक सचेतन
साधन बन जाती है, जिससे आप काम करते हैं।
☑️ऐसे में अब आप सिर्फ खुद की ही
नहीं, बल्कि पूरी धरती की खुशहाली की इच्छा करेंगे।
☑️इच्छाओं की प्रकृति ही इन सबकी जड़ है। जब आप अपनी इच्छा को नियंत्रित
करना सीख जाते हैं, जब आपके और आपके मन के बीच एक दूरी बन जाती है, तो
आप बस फिर वही करते हैं जो उस पल और उस स्थिति के लिए जरूरी है।
☑️ आ⭐प इच्छा
के साथ खेलना सीख लेते हैं। इच्छाएँ अब “आप” के बारे में या आपसे जुड़ी नहीं रह
जातीं। अब आपका कर्म बंधन पूरी तरह से गायब हो जाता है।
☑️इंसान इच्छा से संबध कैसे तोड़े? बिना इच्छा के व्यक्तित्व कैसे बन सकता है?
तर्क सरल है : व्यक्तित्व एक भ्रम है। वह एक सोच है, अस्तित्वगत सच्चाई नहीं है।
☑️बुद्धिमत्ता (इन्टेलिजैन्स), जो सारी सृष्टि का आधार है, जब आप उसके सम्पर्क
में आते हैं, तो आपको एहसास होता है कि आप किसी चीज से अलग नहीं हैं।
⭐नृत्य का एक हिस्सा है। वह जानता है कि हवा, पानी, धूप, और धरती से लेन-देन
इस ब्रह्मांड से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं।
☑️आपका शरीर ब्रह्मांड के विशाल आणविक
हमने अज्ञानता से अपनी दुनिया को बाँट दिया है।
☑️किए बिना वह एक पल भी जीवित नहीं रहेगा। हालाँकि, आपका मन इसे नहीं
मानता; उसे यकीन है कि वह एक सीमित और अलग इकाई है।
☑️इसलिए, इस सीमित
है। ऐसे अदूरदर्शी और संकीर्ण इरादे से प्रेरित किसी भी कार्य का मतलब कर्म है।
☑️समझ के कारण कोई भी इरादा सृष्टि के स्रोत की मूलभूत संरचना के खिलाफ जाता


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