आध्यात्मिक विचार शैली : 🌳कुछ लोग दूसरों के मुकाबले अधिक कष्ट क्यों उठाते हैं🌳

रविवार, 3 अगस्त 2025

🌳कुछ लोग दूसरों के मुकाबले अधिक कष्ट क्यों उठाते हैं🌳



कुछ लोग दूसरों के मुकाबले अधिक कष्ट क्यों उठाते हैं?

💜सृष्टि ने हर किसी को एक जैसा क्यों नहीं बनाया है? कुछ लोग विकलांग और दूसरे लोग सक्षम क्यों हैं? कुछ गरीब और दूसरे अमीर क्यों है? 

💜अगर ईश्वर है, तो उसने हर किसी को एक बराबर क्यों नहीं बनाया? हर किसी के कर्म सकारात्मक क्यों नहीं हो सकते? हर किसी के पास एक जैसा सॉफ्टवेयर क्यों नहीं हो सकता? इस सारी असमानता का क्या तुक है?


💜ये ऐसे सवाल हैं जो सदियों से इंसान को परेशान करते रहे हैं। अब जरा ठहरें और पूरी स्पष्टता के साथ इस पर विचार करें।

💜अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप देखेंगे कि मानवीय दुःख या पीड़ा का मुख्य कारण शारीरिक विकलांगता या गरीबी नहीं है। मनुष्य की पीड़ा का कारण वह खुद है।

💜आइए पहले दर्द और पीड़ा के बीच अंतर को समझते हैं। कष्ट या दर्द शारीरिक है। जब भी शरीर को कोई चोट लगती है तो दर्द होता है। 

💜दर्द आपके शरीर को सचेत करता है कि कुछ गड़बड़ है, और इस पर ध्यान देने की जरूरत है। 

💜दर्द उपयोगी है। वह आपको सावधान करता है। दूसरी ओर, दुःख या पीड़ा मनोवैज्ञानिक है। 

💜उसे आपने पैदा किया है। वह शत-प्रतिशत स्व-निर्मित है।

💜 आपके पास दर्द के लिए कोई विकल्प नहीं है, लेकिन दुःख के लिए आपके पास विकल्प जरूर है। आप हमेशा दुःखी न होना, चुन सकते हैं।

💜आइए इस पर करीब से नजर डालते हैं। हजारों साल पहले, दुनिया भर में लोग मामूली घरों में काफी खुशी से रहते थे।

 💜छोटे और मामूली घरों में रहना कोई बड़ी बात नहीं थी।

💜 आज समस्या यह है कि कोई एक बड़ी हवेली में रहता है, और दूसरा एक बेडरूम के अपार्टमेंट में। 

💜यही दूसरे व्यक्ति के दुख का कारण है।

💜 किसी के पास तीन कार है, और किसी दूसरे के पास एक। यह उस व्यक्ति के दुःख का कारण है। 

💜कोई इसलिए दुखी है, क्योंकि वह विदेश में छुट्टियाँ नहीं मना सकता।

💜भौतिक स्थिति इनके दुख का कारण नहीं है।

 💜यह उस स्थिति में उनकी प्रतिक्रिया है जो इनके दुख का कारण है। 

💜आपके साथ जो हो रहा है उसमें आपका कर्म नहीं है; आपका कर्म, आपके साथ जो हो रहा है, उसके प्रति रेस्पॉन्ड करने के आपके तरीके

❤️में है। इंसान लगभग हर चीज से दुखी होता है। कोई दुखी है क्योंकि वह कॉलेज नहीं जा सका। 

💜कोई दूसरा कॉलेज जाता है, और उसे पास करके बाहर नहीं आ पाता, यह उसके दुख का कारण है! किसी को नौकरी नहीं मिल पाती, तो वह दुखी है। 

💜किसी दूसरे को नौकरी मिल गई, अब वह नौकरी की चुनौतियों से दुखी है। 

💜कोई दुखी है क्योंकि उसकी शादी नहीं हुई, तो कोई शादी की वजह से यातना सह रहा है! किसी की संतान नहीं है, तो वह दुखी है। 

💜किसी के बच्चे हैं, और इसलिए वे लगातार संता

में हैं। तो आपका दुःख आपकी परिस्थितियों के कारण नहीं है। आपका दुःख, जिस तरह से आपने खुद को बनाया है, उसके कारण है। और इसी पर आपको ध्यान देने की जरूरत है।

💜लेकिन आप भाग्य और सौभाग्य के बारे में क्या कहेंगे? स्वतंत्न इच्छाशक्ति और नियति के बीच अंतहीन बहस के बारे में क्या कहेंगे? ये सवाल अभी भी कई लोगों

को परेशान करते हैं।

💜जब भी मुझसे ये सवाल पूछे जाते हैं, तो मैं पहले यही बताता हूँ कि यह बहस हमेशा के लिए चलती रह सकती है। क्या आप इस पर जीवनभर बहस करना चाहते हैं? जैसे मुर्गी पहले आई या अंडा, यह कभी न खत्म होने वाली बहस है।

💜एक बार ऐसा हुआ...

💜लगभग पच्चीस साल के बाद, शंकरन पिल्लै अपने कॉलेज के दोस्तों से मिले।

💜वे सब जश्न मनाने के लिए एक रेस्तरां में इकट्ठा हुए। उन्होंने खाना और ड्रिंक्स ऑर्डर किए। बातचीत के दौरान यह बहस शुरू हो गईः आपके ख्याल से कौन पहले आया

- मुर्गी या अंडा ?

💜जब हर कोई बहस करने में लगा था, तब शंकरन पिल्लै अपना ड्रिंक पीने और नाश्ता करने में मस्त थे। उनके दोस्तों ने उनसे पूछा, 'अरे, इतनी महत्वपूर्ण बहस में क्या तुम्हारी दिलचस्पी नहीं है? क्या तुम जानना नहीं चाहते क्या पहले आया-मुर्गी या अंडा?'

💜शंकरन पिल्लै ने मुँह उठाया और बोले, 'जिसका भी ऑर्डर तुमने पहले दिया

💜होगा, वही पहले आएगा।'

💜क्या आप वाकई अपना शेष जीवन स्वतंत्र इच्छा-शक्ति और नियति पर बहस करते

💜हुए बिताना चाहते हैं?

💜पूर्वी सभ्यता में, यह कहा जाता है, 'आपका जीवन ही आपका कर्म है।' इसका अर्थ है कि आप कितना कर्म अपने हाथ में ले सकते हैं यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितने सचेतन हो गए हैं। 

💜अगर आपको अपने शरीर पर महारत हासिल है, तो आपके जीवन और नियति का पंद्रह से बीस प्रतिशत आपके हाथ में होगा। अगर आपको अपनी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया पर अधिकार है, तो पचास से साठ प्रतिशत जीवन और नियति आपके हाथों में होगी।

💜 अगर अपनी जीवन ऊर्जा पर आपक महारत हो जाती है, तो आपका जीवन और नियति सौ प्रतिशत आपके हाथ में ह सकते हैं।

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