❤️🔥💖कार्य से बचना मतलब कर्म संचय को बढ़ाना❤️🔥💖
💫कार्य से बचना मतलब कर्म संचय को बढ़ाना
💫कर्म और इच्छा के बारे में एक और दुर्भाग्यपूर्ण गलतफहमी है।
💫चूँकि पसंद और नापसंद के बीच अंतहीन रूप से झूलते रहना, कर्म पैदा करता है, इसीलिए काम से बचने और अनासक्ति की फिलॉसफी लोकप्रिय होने लगी है।
💫हमने देखा कि कैसे गौतम बुद्ध की इच्छाहीनता की शिक्षा का गलत अर्थ निकाला गया।
💫 ये सभी जीवन दर्शन और उल्टी-सीधी व्याख्याएँ एक ही इच्छा की वजह से पैदा होती है: कर्म से कैसे बचें।
💫विडंबना यह है कि आप कर्म से बचने की जितनी ज्यादा कोशिश करते हैं, उतनी ही तेजी से यह बढ़ता जाता है!
💫इंसान के उलझ जाने के डर की वजह से, जीवन से अलगाव के सिद्धांत विकसित हुए हैं।
💫 ये सिद्धांत इस बात को अनदेखा कर देते हैं कि एक सर्व-समावेशी, गहरी भागीदारी के बिना, कोई जीवन नहीं हो सकता।
💫आखिरकार ये सिद्धांत, जीवन को ही नकार देते हैं।
💫अनासक्ति वै, विरक्ति या अलगाव के सिद्धांत दरअसल आनंदरहित हैं।
💫उन्हें अपनाने से रोजमर्रा के जीवन में थोड़ा संतुलन और स्थिरता पैदा हो सकती हैं, पर वे मुक्ति की ओर नहीं ले जाते।
💫इनसे अक्सर ज्यादा कर्म संचित होते हैं। जो लोग जीवन को नकारने और अलगाव वाले इन सिद्धांतों पर अमल करते हैं, वे धीरे-धीरे खुद ही जीवनरहित हो जाते हैं।
💫जीवनहीनता को आमंत्लित करना नकारात्मक कर्म है।
जीवन का दमन करना निश्चित रूप से नकारात्मक कर्म है।
💫अब, दमन से हमारा क्या मतलब है? कुछ ऐसा करना जो आप नहीं करना चाहते हैं, जरूरी नहीं कि वह दमन हो।
💫 उदाहरण के लिए, कुछ परंपराओं में साधकों को किसी खास समय पर उपवास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
💫यह दमन नहीं है। लोग अक्सर सोचते हैं कि किसी पल वे जो करना चाहते हैं, उसे न करना, दमन है। ऐसा नहीं है।
💫दमन का सीधा-सा मतलब है कि आप अधूरे मन से जीवन को अनुभव कर रहे हैं।
💫पूरी तरह जीने का मतलब है, खुद को पूरी तरह से किसी चीज का अनुभव करने देना।
💫अगर आप खुद को पूरी तरह से भूख का अनुभव करने देते हैं, तो वह शानदार और आजाद करने वाली होती है।
💫अगर आप खुद को पूरी तरह से भोजन का अनुभव करने देते हैं, तो वह भी शानदार और आजाद करने वाला है।
💫दुर्भाग्य से, लोग पूरी तरह न तो भूख का अनुभव करते हैं, न भोजन का।
💫यदि आप किसी भी अनुभव से बचते हैं- चाहे वह कष्ट हो या सुख, दुःख या आनंद - वह एक बड़ा कर्म है।
💫 लेकिन अगर आप अनुभव का विरोध किए बिना उससे गुजरते हैं, तो कर्म विसर्जित होता है।


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