💜कुल वेदना : सामूहिक कर्म का भार💜
कुल वेदना : सामूहिक कर्म का भार
😶अब, क्या सामूहिक कर्म जैसी कोई चीज है? क्या माता-पिता का दुःख बच्चे तक जाता है? कुछ वंश या कुल और समुदाय दूसरों के मुकाबले ज्यादा दुख या पीड़ा क्यों सहते हैं?
😶हमारे कार्य केवल व्यक्तिगत नहीं होते हैं। हम जो करते हैं, उसका असर कई दूसरे लोगों पर भी पड़ सकता है
😶हमारे विवेकपूर्ण और मूर्खतापूर्ण कार्यों के सामूहिक नतीजे होते हैं। अगर हम पहाड़ों में ऊँची जगह पर रहना चुनते हैं, तो जंगली जानवरों के कर्म हम पर ज्यादा असर डाल सकते हैं!
😶 लेकिन चूँकि हमने सामाजिक परिस्थितियों में लोगों के बीच रहना चुना है, तो दूसरे लोगों के इरादे और कार्य हमें प्रभावित करते हैं। और यह हमारा सामूहिक कर्म बन जाता है।
😶कुल वेदना को समझें। यह सामूहिक पीड़ा, एक परिवार, एक कुल या एक समुदाय की पीड़ा को दर्शाती है।
😶इसका मतलब है कि आपके भीतर की पीड़ा सिर्फ आपके व्यक्तिगत अतीत से नहीं आती है। यह आपके पूर्वजों से भी आती है और आपकी आने वाली पीढ़ियों तक भी पहुँचती है।
😶यही कारण है कि पारंपरिक समाजों ने अंतर्विवाह के मामले में बहुत सख्त सीमाएँ तय की हुई थीं।
😶 ये सीमाएँ बाद में रूढ़िवाद और सामाजिक भेदभाव में बदल गईं, और आज की दुनिया में वे प्रासंगिक नहीं हैं।
😶हालाँकि, उनका मूल एक तरह की समझ में निहित था। इस मामले की जड़ सिर्फ आनुवंशिकी के बारे में नहीं थी।
😶यह इस समझ पर आधारित था कि आपकी ऊर्जा पर छपी कर्म स्मृति आपके बच्चों तक पहुँचती है और इस तरह पीड़ा को जारी रखती है।
😶इसका मतलब है कि आप उस तरह के कर्म बना रहे हैं जिनका निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
💌हालाँकि आधुनिक दुनिया में इन तय सीमाओं की कोई जगह नहीं है, फिर 'भी बहुत से लोग, अनजाने में, इन सीमाओं की वजह से आने वाली पीढ़ियों के लिए अनकही पीड़ा पैदा कर रहे हैं।
💕 अक्सर यह खुद को धोखा देना होता है। इन लोगों को भले ही समाज के स्तंभ, गुणों की खान माना जाता है, लेकिन उनकी सोच या जीने का तरीका उनके बाद की पीढ़ियों में पीड़ा फैला रहा है।
☀️अपनी अज्ञानता से, वे न केवल अपना, बल्कि अपनी अजन्मी संतानों का जीवन भी दूषित कर रहे हैं।
✍️आप कैसे रहते हैं, इसका असर सिर्फ आप पर ही नहीं पड़ता। पिछली पीढ़ियों अपने कर्मों से मुक्त हैं या नहीं, और आने वाली पीढ़ियाँ पीड़ा सहती हैं या नहीं, यह इस पर भी निर्भर करता है कि आप कैसे जीते हैं।
💯आपको अपने जीवनकाल में जिस तरह की कृपा ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वह आपके पहले और बाद के लोगों के जीवन से भी जुड़ा है।
🧘♀️भारतीय पौराणिक ग्रंथों में उन राजाओं की कहानियाँ हैं जो राजाओं से नहीं, बल्कि ऋषियों से पैदा हुए थे।
🧘♀️नियोग नाम की इस प्रथा में, रानी अपने पति के बजाय एक ऋषि के साथ बच्चा पैदा करती थी।
🍁 ऐसा राजा की पूरी जानकारी में किया जाता था। इसका मकसद परिवार के भीतर पीड़ा की कड़ी को तोड़ना था।
🧘♀️राजा नहीं चाहता था कि उसके बच्चे उसके सारे नकारात्मक कर्मों को विरासत में लें; वह खुद जैसा बेटा पैदा कर सकता था, उससे बेहतर बेटा चाहता था।
🍓आज यह हमारी सोच के बाहर हो सकता है। लेकिन यह इस साधारण सोच पर आधारित था कि एक राज्य को एक बेहतरीन शासक मिलना चाहिए।
😃 राजा नहीं चाहता था कि उसकी अपनी पीड़ा, लालच, इच्छा के जहर का बोझ उसकी संतान पर पड़े।
😄वह अपनी जनता का कल्याण चाहता था। जाहिर है, कि यह प्रथा आधुनिक समय के लिए पुरानी और अप्रासंगिक है, क्योंकि हमने अपने नेताओं को चुनने के लोकतांत्रिक तरीके खोज लिए हैं।
😅लेकिन उस समय यह जीवन की एक खास समझ पर आधारित था।
😁आप एक दर्शक के रूप में कोई फिल्म देखने जातें हैं- आप हँस सकते हैं, रो सकते हैं, अपना पॉपकॉर्न खाकर बाहर आ सकते हैं। लेकिन फिल्म निर्माता पूरे नाटक को अलग ढंग से देखते हैं।
😄वे जानते हैं कि फिल्म कैसे बनती है; वे इसके पीछे के कौशल और तकनीक को जानते हैं।
😶एक साधारण फिल्म देखने वाला यह कभी नहीं समझ पाएगा कि फिल्म कैसे बनाई गई है।
😭जीवन पर भी यही लागू होता है। आपका और निर्माता का नजरिया अलग होगा, जो निर्माता के लिए कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है, वह आपके लिए अजीब हो सकता है।


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