आध्यात्मिक विचार शैली

शनिवार, 21 जून 2025

"❤️कर्म का क्रूर शासन❤️"

कर्म का क्रूर शासन

✍️कर्म की बाध्यता जिस स्तर पर काम करती है, वह आपको हैरान कर सकता है। जब
आप किसी ऑडिटोरियम या कॉन्फरेंस रूम में जाते हैं, तो आप बैठने के लिए जो

✍️जगह चुनते हैं, वह स्वतंत्र रूप से लिया गया निर्णय लगता है। लेकिन अक्सर उसमें24
कर्म

✍️कहीं न कहीं कर्म की विवशता या चक्र शामिल होता है। अगर आप उसी कॉन्फरेंस
या कक्षा में अगले पाँच दिन तक शामिल होते हैं, तो आप गौर करेंगे कि हर दिन
आपके एक ही जगह बैठने की ज्यादा संभावना होती है।

✍️कई साल पहले, जब मैं अपने इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम को विभिन्न जगहों

✍️पर चलाने के लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग दे रहा था, तो नए ट्रेनी शिक्षक अक्सर पूछते

✍️थे, ‘सद्गुरु, प्रतिभागी किस तरह के सवाल पूछ सकते हैं? हम क्या उम्मीद करें और
उनका क्या जवाब दें?' तो मैंने कक्षा की व्यवस्था के बारे में उनके लिए एक चार्ट

✍️बनाया और उनसे कहा, 'देखिए, अगर एक व्यक्ति यहाँ आकर बैठता है, तो वह

✍️इस प्रकार के सवाल पूछेगा। अगर कोई प्रतिभागी वहाँ बैठता है, तो वह ऐसे सवाल

✍️पूछेगा।' अब, निश्चित रूप से अपवाद तो होते ही हैं : देर से आने वाला इंसान सीट की

✍️उपलब्धता के आधार पर जगह चुन सकता है। लेकिन नब्बे प्रतिशत मौकों पर ठीक

✍️वैसा ही होता था, जैसा मैंने कहा था ! कर्म उम्मीद के मुताबिक इतना ही है।

✍️तो कर्म अपराध और दंड की कोई बाहरी व्यवस्था नहीं है। यह आपका पैदा

✍️किया हुआ एक आँतरिक चक्र है। ये पैटर्न आपको बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से

✍️प्रताड़ित कर रहे हैं। बाहर से, भले ही आपके लिए यह एक नया दिन हो सकता
 है। 
✍️आपके पास एक नई नौकरी, नया घर, नया जीवन साथी, नया बच्चा हो सकता
है। 

✍️आप एक नए देश में हो सकते हैं। लेकिन, अंदर, आप उसी तरह के चक्रों

✍️का अनुभव करते हैं—वही आंतरिक उतार-चढ़ाव, व्यवहार में वही बदलाव, वही

✍️मानसिक प्रतिक्रियाएँ, और वही मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ।
आपके अनुभव के अलावा हर चीज बदल गई है। आप बाहरी माहौल को

✍️बदलते रहिए, लेकिन कुछ भी काम नहीं करेगा अगर आप यह नहीं पता कर पाए

हैं कि अपने कर्म को कैसे बदलें। आपको महसूस होगा जैसे कोई और चीज़ आपके

✍️बटन दबा रही हो। जैसे कोई दूसरा आपकी कार चला रहा हो।
✍️इस धरती के हर दूसरे जीव के लिए, संघर्ष मुख्य रूप से शारीरिक होते हैं।

✍️अगर वे बस भर पेट खा लें, तो वे आराम से होते हैं। लेकिन मनुष्य अलग है। इंसान
के लिए, पेट खाली होने पर सिर्फ एक समस्या होती है, लेकिन जब पेट भरा होता है

✍️तो सैंकड़ों समस्याएँ होती हैं! आप भले ही आजादी की बात करें, लेकिन आप, हु

✍️समय अपनी सीमाओं में ही रहना चाहते हैं। आप आजादी की कीमत की तारीफ

✍️करते हैं, लेकिन आपकी हर चीज न सिर्फ आपका रंग-रूप या महसूस करने वा
सोचने का तरीका, बल्कि आपके बैठने, खड़े होने या चलने का तरीका भी आपके
पिछले पैटर्न से तय होता है।

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"⭐कर्म का चक्र⭐"

कर्म का चक्र
👉हालाँकि, यात्री से ड्राइवर बनने के लिए आपको शुरुआत कुछ बुनियादी नियमों की
जानकारी से करनी होगी कि कर्म की प्रणाली कैसे काम करती है।

👉आइए, चर्चा की शुरुआत एक बुनियादी गलतफहमी को समझने से करते हैं।

👉हालाँकि कर्म का अर्थ कार्य होता है, 'लेकिन' यह जरूरी नहीं है कि इसका संबंध शरीर
से किए कार्य से हो। जरूरी नहीं है कि इसका संबंध दुनिया में किए गए हमारे अच्छे
और बुरे काम से हो।

 👉कर्म का संबंध तीन स्तरों पर किए गए कार्यों से है : शरीर, मन,
और ऊर्जा के स्तर पर। इन तीनों स्तरों पर आप जो भी करते हैं, वह आपके ऊपर
एक खास अवशेष या छाप छोड़ता है।

👉इसका क्या अर्थ है?
यह बहुत आसान है। आपकी पाँच इंद्रियाँ, आपके जीवन में हर समय बाहरी
दुनिया से आँकड़े जमा कर रही हैं। दुनिया में हो रहे परिवर्तन या बदलाव आप को हर

👉पल जबर्दस्त रूप से प्रभावित करते हैं। समय के साथ, इंद्रियों से प्राप्त छापों की यहविशाल मात्रा आपके भीतर एक खास पैटर्न बनाने लगती है। यह पैटर्न खुद को धीरे-धीरे
'प्रवृत्तियों' में बदल देता है। ये प्रवृत्तियाँ समय के साथ ठोस बनकर आपकी शख्सियत

👉या जिसे आप अपना असली स्वभाव होने का दावा करते हैं, उसका निर्माण करती हैं।
यह उल्टा भी काम करता है : आप अपने आस-पास की दुनिया को जिस प्रकार

👉से अनुभव करते हैं, उसी प्रकार आपका मन आकार ले लेता है। 
यह आपका कर्म बन
जाता है-जीवन के प्रति एक ऐसा दृष्टिकोण जिसे आपने अपेक्षाकृत अनजाने में खुद
के लिए बनाया है।

 👉ये प्रवृत्तियाँ कैसे विकसित होती हैं, आप इस बारे में जागरूक नहीं हैं।

👉लेकिन जिसे आप 'मैं' मानते हैं, वह बस उन आदतों, रुझानों, और प्रवृत्तियों

👉का एक संग्रह है, जिन्हें आपने समय के साथ, इस प्रक्रिया के प्रति जागरूक हुए बिना
जमा कर लिया है।

👉एक सरल उदहारण लेते हैं, कुछ लोग शायद बचपन में खुशमिजाज रहे हों,

👉लेकिन अब बड़े होकर वे दुखी हैं। हो सकता है कि जीवन की कुछ घटनाओं ने उन्हें

👉दुखी बना दिया हो, लेकिन ज्यादातर मामलों में, लोगों को यह अंदाजा ही नहीं होता

👈कि उनकी यह शख्सियत कैसे और कब बन गई। अगर उन्होंने अपने व्यक्तित्व

👈का निर्माण चेतनापूर्वक किया होता, तो उन्होंने खुद को काफी अलग तरीके से गढ़ा

👉होता। लेकिन कहीं-न-कहीं, उनकी बिना सोची-समझी प्रतिक्रियाओं और प्रवृत्तियों

👉की वजह से दुखी रहना उनके जीवन का एक स्थायी भाव बन गया है।

👉दूसरे शब्दों में, कर्म एक पुराने सॉफ्टवेयर की तरह है, जिसे आपने खुद के लिए
अनजाने में लिखा है।

👉और, जाहिर है कि आप उसे रोजाना अपडेट कर रहे हैं।
आप जिस तरह का शारीरिक, मानसिक, और ऊर्जा संबंधी कार्य करते हैं,

👉उसके आधार पर, आप अपना सॉफ्टवेयर लिखते हैं। एक बार जब वह सॉफ्टवेयर

👉लिख जाता है, तो आपका पूरा सिस्टम उसी के अनुसार काम करता है। अतीत की

👉जानकारी के आधार पर, स्मृति के कुछ खास पैटर्न का दोहराव होता रहता है।

👉 अब
आपका जीवन आदतन, दोहराव भरा और चक्रीय हो जाता है। समय के साथ, आप

👉अपने पैटर्न में उलझते जाते हैं। बहुत सारे लोगों की तरह, आप भी शायद नहीं जानते

👉कि आपके आंतरिक और बाहरी जीवन में कुछ स्थितियाँ बार-बार क्यों आती रहती

👉हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये पैटर्न अवचेतन में बने हैं। जैसे-जैसे समय बीतता जाता

👉है, आप अपने संचित अतीत की कठपुतली बनते जाते हैं।
उदाहरण के लिए, कई लोगों को किसी खास खाने या नशीली चीजों की आदत

👉होती है। नशीले पदार्थों की लत निश्चित रूप से बहुत मजबूत होती है, लेकिन मुख्य

👉समस्या यह है कि उन्होंने अपने जीवन में दोहराव का एक पैटर्न स्थापित कर लिया है।

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शुक्रवार, 20 जून 2025

👉"सुलझाएँ कर्म की पहेली"👈

👉सुलझाएँ कर्म की पहेली
इसके साथ ही हम किताब के मूल प्रश्न पर आते हैं: कर्म क्या है?
शाब्दिक तौर पर, इसका अर्थ है, कार्य या काम।

👉दुर्भाग्य से, ज्यादातर लोग कार्य को अच्छे और बुरे काम के संदर्भ में समझत
   हैं।

👉 वे कर्म को गुण और अवगुण, पुण्य और पाप की एक बैलेंस शीट के रूप में देखते हैं।

👉जैसे ये जीवन का एक तरह का लेखा-जोखा हो। जो लोग इस तरह से सोचते हैं,
उनके लिए, यह किसी दैवीय चार्टर्ड एकाउंटेंट का बनाया हुआ एक बही-खाता है,
जो कुछ लोगों के लिए दिव्य आनंद तय करता है, तो दूसरों को पाताल लोक में या
किसी रिसाइक्लिंग मशीन में झोंक देता है, जो उन्हें थोड़ा और दुःख सहने के लिए इस
दुनिया में वापस फेंक देती है।

👉यह सोच सिर्फ गलत और बेतुकी ही नहीं, दुखद भी है।
इस सोच ने उलझे और डरे हुए इंसानों की कई पीढ़ियाँ तैयार की हैं, जो इस

👉शब्द का विवेकहीन तरीके से इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अंदाजा ही नहीं है कि इसका

👉क्या मतलब होता है। इसने भाग्यवाद के एक ब्रांड को जन्म दिया है, जिसने लोगों के
विशाल वर्ग को पंगु बना दिया है। भाग्यवाद का उपयोग तमाम सामाजिक अन्यायों

👉और राजनीतिक अत्याचारों को वैध बनाने या सही ठहराने के लिए किया गया है।

👉इसने तमाम कल्पित दार्शनिकता और खोखली अकादमिक बहसों को प्रेरित किया है
और साथ ही, भविष्य बताने वालों के कारोबार को बढ़ावा दिया है!
पहले इस भ्रम को दूर करते हैं।

👉वास्तव में, कर्म का पुरस्कार और दंड से कोई लेना-देना नहीं है।  
इसका सम्बंध
आसमान में बैठी किसी निरंकुश सत्ता से नहीं है जो दंड और पुरस्कार देने के आदिम
तरीकों से काम करती है। इसका स्वर्ग में बैठे किसी दयालु भगवान या ईश्वरीय
प्रतिशोध से भी कोई संबंध नहीं है। पुण्य और पाप, अच्छे और बुरे, भगवान और
शैतान किसी से कोई लेना-देना नहीं है।

👉कर्म का अर्थ सिर्फ यह है कि हमने ही अपने जीवन का खाका तैयार किया है।

👉इसका मतलब है कि हम खुद अपने भाग्य के निर्माता हैं। जब हम कहते हैं 'यह मेरा
कर्म है, तो असल में हम यह कह रहे हैं, 'मैं अपने जीवन के लिए जिम्मेदार हूँ।'

👉कर्म का संबंध अपना रचयिता खुद बनने से है। जिम्मेदारी को स्वर्ग से हटाकर
अपने ऊपर डालने से, इंसान खुद ही अपने भाग्य का निर्माता बन जाता है।

👉कर्म अस्तित्व का स्वाभाविक आधार है। यह कोई कानून नहीं है, जिसे ऊपर
                से थोपा गया है। 

👉यह हमें अपनी जिम्मेदारी कहीं और नहीं डालने देता; यह हमें
अपने माता-पिता, अपने शिक्षकों, अपने देशों, अपने नेताओं, अपने भगवानों या

👉अपने भाग्य को दोषी नहीं ठहराने देता। यह हम सभी को अपनी नियति के लिए
और, सबसे बढ़कर, जीवन के हमारे अनुभवों की प्रकृति के लिए पूरी तरह जिम्मेदार
बनाता है।

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बुधवार, 18 जून 2025

कर्म : एक शाश्वत पहेली



कर्म : एक शाश्वत पहेली

                          सूत्र # 1
👉कर्म का संबंध अपनी खुद की रचना का स्रोत बनने से है।
उत्तरदायित्व को स्वर्ग पर डालने की बजाए अपने हाथों में ले लेने से,
इंसान खुद अपने भाग्य का निर्माता बन जाता है।

💯बैठें ड्राइवर की सीट पर

👉एक बार ऐसा हुआ।

पोप अमेरिका गए। उनका कार्यक्रम बहुत व्यस्त था और उन्हें अलग-अलग
शहरों में जाना था। 

👉एक दिन वह लुइसियाना में एक स्ट्रेच-लिमो में यात्रा कर रहे थे,
जिसे एक ड्राइवर चला रहा था। 

👉उन्होंने कभी कोई कार नहीं चलाई थी। तो उन्होंने
ड्राइवर से कहा, 'मैं यह गाड़ी चलाना चाहता हूँ।'
ड्राइवर भला पोप को इन्कार कैसे कर सकता था? वह बोला, 'जैसा आप कहें,

👉होली फादर ।'
तो पोप ने स्टीयरिंग संभाला और ड्राइवर पीछे की सीट पर बैठ गया। पोप ने
कार का आनंद लेना शुरू किया और उनका पैर गैस पैडल को जोर से दबाने लगा।

👉वह नब्बे और फिर सौ मील प्रति घंटे की रफ्तार पर पहुँच गए। उन्हें एहसास ही नहीं
हुआ कि वह कितना तेज जा रहे हैं।

👉अब, लुइसियाना पुलिस, जो स्पीड उल्लंघन के मामले में बहुत सख्त मानी जाती
है, हरकत में आ गई।

👉 तेज दौड़ती हुई लिमो से जब पोप ने अपने पीछे फ्लैशिंग लाइट
देखी, तो उन्होंने गाड़ी को किनारे ले लिया।

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