"❤️कर्म का क्रूर शासन❤️"
कर्म का क्रूर शासन
✍️कर्म की बाध्यता जिस स्तर पर काम करती है, वह आपको हैरान कर सकता है। जब
आप किसी ऑडिटोरियम या कॉन्फरेंस रूम में जाते हैं, तो आप बैठने के लिए जो
✍️जगह चुनते हैं, वह स्वतंत्र रूप से लिया गया निर्णय लगता है। लेकिन अक्सर उसमें24
कर्म
✍️कहीं न कहीं कर्म की विवशता या चक्र शामिल होता है। अगर आप उसी कॉन्फरेंस
या कक्षा में अगले पाँच दिन तक शामिल होते हैं, तो आप गौर करेंगे कि हर दिन
आपके एक ही जगह बैठने की ज्यादा संभावना होती है।
✍️कई साल पहले, जब मैं अपने इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम को विभिन्न जगहों
✍️पर चलाने के लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग दे रहा था, तो नए ट्रेनी शिक्षक अक्सर पूछते
✍️थे, ‘सद्गुरु, प्रतिभागी किस तरह के सवाल पूछ सकते हैं? हम क्या उम्मीद करें और
उनका क्या जवाब दें?' तो मैंने कक्षा की व्यवस्था के बारे में उनके लिए एक चार्ट
✍️बनाया और उनसे कहा, 'देखिए, अगर एक व्यक्ति यहाँ आकर बैठता है, तो वह
✍️इस प्रकार के सवाल पूछेगा। अगर कोई प्रतिभागी वहाँ बैठता है, तो वह ऐसे सवाल
✍️पूछेगा।' अब, निश्चित रूप से अपवाद तो होते ही हैं : देर से आने वाला इंसान सीट की
✍️उपलब्धता के आधार पर जगह चुन सकता है। लेकिन नब्बे प्रतिशत मौकों पर ठीक
✍️वैसा ही होता था, जैसा मैंने कहा था ! कर्म उम्मीद के मुताबिक इतना ही है।
✍️तो कर्म अपराध और दंड की कोई बाहरी व्यवस्था नहीं है। यह आपका पैदा
✍️किया हुआ एक आँतरिक चक्र है। ये पैटर्न आपको बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से
✍️प्रताड़ित कर रहे हैं। बाहर से, भले ही आपके लिए यह एक नया दिन हो सकता
है।
✍️आपके पास एक नई नौकरी, नया घर, नया जीवन साथी, नया बच्चा हो सकता
है।
✍️आप एक नए देश में हो सकते हैं। लेकिन, अंदर, आप उसी तरह के चक्रों
✍️का अनुभव करते हैं—वही आंतरिक उतार-चढ़ाव, व्यवहार में वही बदलाव, वही
✍️मानसिक प्रतिक्रियाएँ, और वही मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ।
आपके अनुभव के अलावा हर चीज बदल गई है। आप बाहरी माहौल को
✍️बदलते रहिए, लेकिन कुछ भी काम नहीं करेगा अगर आप यह नहीं पता कर पाए
हैं कि अपने कर्म को कैसे बदलें। आपको महसूस होगा जैसे कोई और चीज़ आपके
✍️बटन दबा रही हो। जैसे कोई दूसरा आपकी कार चला रहा हो।
✍️इस धरती के हर दूसरे जीव के लिए, संघर्ष मुख्य रूप से शारीरिक होते हैं।
✍️अगर वे बस भर पेट खा लें, तो वे आराम से होते हैं। लेकिन मनुष्य अलग है। इंसान
के लिए, पेट खाली होने पर सिर्फ एक समस्या होती है, लेकिन जब पेट भरा होता है
✍️तो सैंकड़ों समस्याएँ होती हैं! आप भले ही आजादी की बात करें, लेकिन आप, हु
✍️समय अपनी सीमाओं में ही रहना चाहते हैं। आप आजादी की कीमत की तारीफ
✍️करते हैं, लेकिन आपकी हर चीज न सिर्फ आपका रंग-रूप या महसूस करने वा
सोचने का तरीका, बल्कि आपके बैठने, खड़े होने या चलने का तरीका भी आपके
लेबल: karma


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