👉"सुलझाएँ कर्म की पहेली"👈
👉सुलझाएँ कर्म की पहेली
इसके साथ ही हम किताब के मूल प्रश्न पर आते हैं: कर्म क्या है?
शाब्दिक तौर पर, इसका अर्थ है, कार्य या काम।
👉दुर्भाग्य से, ज्यादातर लोग कार्य को अच्छे और बुरे काम के संदर्भ में समझत
हैं।
👉 वे कर्म को गुण और अवगुण, पुण्य और पाप की एक बैलेंस शीट के रूप में देखते हैं।
👉जैसे ये जीवन का एक तरह का लेखा-जोखा हो। जो लोग इस तरह से सोचते हैं,
उनके लिए, यह किसी दैवीय चार्टर्ड एकाउंटेंट का बनाया हुआ एक बही-खाता है,
जो कुछ लोगों के लिए दिव्य आनंद तय करता है, तो दूसरों को पाताल लोक में या
किसी रिसाइक्लिंग मशीन में झोंक देता है, जो उन्हें थोड़ा और दुःख सहने के लिए इस
दुनिया में वापस फेंक देती है।
👉यह सोच सिर्फ गलत और बेतुकी ही नहीं, दुखद भी है।
इस सोच ने उलझे और डरे हुए इंसानों की कई पीढ़ियाँ तैयार की हैं, जो इस
👉शब्द का विवेकहीन तरीके से इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अंदाजा ही नहीं है कि इसका
👉क्या मतलब होता है। इसने भाग्यवाद के एक ब्रांड को जन्म दिया है, जिसने लोगों के
विशाल वर्ग को पंगु बना दिया है। भाग्यवाद का उपयोग तमाम सामाजिक अन्यायों
👉और राजनीतिक अत्याचारों को वैध बनाने या सही ठहराने के लिए किया गया है।
👉इसने तमाम कल्पित दार्शनिकता और खोखली अकादमिक बहसों को प्रेरित किया है
और साथ ही, भविष्य बताने वालों के कारोबार को बढ़ावा दिया है!
पहले इस भ्रम को दूर करते हैं।
👉वास्तव में, कर्म का पुरस्कार और दंड से कोई लेना-देना नहीं है।
इसका सम्बंध
आसमान में बैठी किसी निरंकुश सत्ता से नहीं है जो दंड और पुरस्कार देने के आदिम
तरीकों से काम करती है। इसका स्वर्ग में बैठे किसी दयालु भगवान या ईश्वरीय
प्रतिशोध से भी कोई संबंध नहीं है। पुण्य और पाप, अच्छे और बुरे, भगवान और
शैतान किसी से कोई लेना-देना नहीं है।
👉कर्म का अर्थ सिर्फ यह है कि हमने ही अपने जीवन का खाका तैयार किया है।
👉इसका मतलब है कि हम खुद अपने भाग्य के निर्माता हैं। जब हम कहते हैं 'यह मेरा
कर्म है, तो असल में हम यह कह रहे हैं, 'मैं अपने जीवन के लिए जिम्मेदार हूँ।'
👉कर्म का संबंध अपना रचयिता खुद बनने से है। जिम्मेदारी को स्वर्ग से हटाकर
अपने ऊपर डालने से, इंसान खुद ही अपने भाग्य का निर्माता बन जाता है।
👉कर्म अस्तित्व का स्वाभाविक आधार है। यह कोई कानून नहीं है, जिसे ऊपर
से थोपा गया है।
👉यह हमें अपनी जिम्मेदारी कहीं और नहीं डालने देता; यह हमें
अपने माता-पिता, अपने शिक्षकों, अपने देशों, अपने नेताओं, अपने भगवानों या
👉अपने भाग्य को दोषी नहीं ठहराने देता। यह हम सभी को अपनी नियति के लिए
और, सबसे बढ़कर, जीवन के हमारे अनुभवों की प्रकृति के लिए पूरी तरह जिम्मेदार
लेबल: karma


0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ