👉⭐ इच्छा-शक्ति : कर्म का आधार ⭐👈
इच्छा-शक्ति : कर्म का आधार
आखिरकार, जीवन न तो दुःख है, न आनंद।
यह वैसा है, जैसा आप इसे बनाते हैं।
हिसाब लगाने के परिणाम
☑️एक बार ऐसा हुआ...
एक शाम दो दोस्त साथ जा रहे थे। हर शनिवार शाम को एक वेश्या के पास
जाना उनकी आदत बन गई थी।
☑️जब वे वेश्या की घर की तरफ जा रहे थे, तो उन्होंने
भारत के महान पवित्र ग्रंथ भगवद्गीता पर एक प्रवचन होता हुआ सुना।
☑️एक दोस्त पर अपराधबोध हावी हो गया। उसने तय किया कि वह वेश्या के
पास नहीं जाएगा, बल्कि वह इसकी बजाय गीता पर प्रवचन सुनकर खुद को सुधारना
चाहेगा। दूसरा दोस्त उसे वहीं छोड़कर आगे चला गया।
☑️अब, प्रवचन सुनने वाला आदमी सिर्फ अपने दोस्त के बारे में सोच रहा है,
जो वेश्या के साथ था। उसे अपने दोस्त से जलन होने लगती है।
☑️उसे एहसास होने
लगता है कि इधर वह इस प्रवचन हॉल में फँस गया है, उधर उसका दोस्त मजे कर
रहा है।
☑️वह खुद को यह सोचने से नहीं रोक पाया कि उसका दोस्त उससे कहीं ज्यादा
समझदार था, जिसने एक धर्मग्रंथ पर प्रवचन सुनने की बजाए वेश्यालय चुना।
☑️अब, जो आदमी वेश्या के घर गया था, उसने पाया कि वह सिर्फ लेक्चर हॉल में
बैठे अपने दोस्त के बारे में सोच रहा है।
☑️ वह मन ही मन अपने दोस्त की तारीफ करने
लगा जिसने शारीरिक सुख से परे, आध्यात्मिक प्रवचन को सुनने का फैसला लिया
लेबल: vi

