आध्यात्मिक विचार शैली : सुलझाएँ कर्म की गुत्थियाँ : एक परिचय

बुधवार, 18 जून 2025

सुलझाएँ कर्म की गुत्थियाँ : एक परिचय


🧘‍♀️एक बार ऐसा हुआ...
एक दिन शंकरन पिल्लै ने एक करोड़ डॉलर की एक नाव खरीदी-चालीस
की एक बहुत ही आलीशान नौका। उन्होंने अपनी नई अमेरिकन बीवी को एक
रोमांटिक नौका विहार पर ले जाने का फैसला किया।
फुट
रास्ते में एक दुर्घटना घट गई। नौका एक चट्टान से जा टकराई और टूट गई।

🧘‍♀️नौका समुद्र में डूबने लगी, पर शंकरन पिल्लै और उनकी पत्नी किसी तरह खुद को
नाव से बाहर निकालने में कामयाब हो गए। उन्होंने तैरकर अपनी जान बचाई और
आखिरकार पास के एक टापू पर पहुँचे—समुद्र के बीचोबीच वहाँ एक रेतीला टापू
था, जहाँ हरियाली का नामो-निशान तक नहीं था।

🧘‍♀️शंकरन पिल्लै और उनकी पत्नी के पास डिब्बाबंद खाने के डब्बे थे। वे जानते थे
कि वो डब्बे दो-तीन दिन ही चलेंगे। वे बहुत मुश्किल में थे।
लेकिन इन हालातों में भी शंकरन पिल्लै परेशान नहीं हुए। वे योग मुद्रा लगाकर
बैठ गए। उनके चेहरे पर, शांतिपूर्ण आध्यात्मिक भाव झलक रहा था। पर उनकी
पत्नी थोड़े अस्थिर स्वभाव की थीं।

🧘‍♀️'हम यहाँ फँस गए हैं।' यह कहकर वह रोने लगीं। 'यहाँ इंसानों की कोई बस्ती
नजर नहीं आ रही है, न किसी तरह के जीवन का कोई नामो-निशान है-न कोई
जीव-जंतु, न कोई पेड़-पौधा, कुछ भी नहीं है। हम जिंदा कैसे रहेंगे? हम यहाँ से कैसे
निकलेंगे? ओह! लगता है जैसे हमारे खुशहाल वैवाहिक जीवन के सपनों का अंत हो
गया! लगता है हमारे जीवन का अंत भयानक होगा!'
शंकरन पिल्लै अपनी योग मुद्रा में बिल्कुल शांत बैठे रहे। उनकी पत्नी हैरान थी।

🧘‍♀️पत्नी ने दुखी होकर कहा, 'तुम इस तरह कैसे बैठ सकते हो? क्या तुम्हें यह समझ नहीं
आ रहा कि हमारा अंत तय है? क्या तुम्हें दिखता नहीं कि हम मरने वाले हैं?'

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