आध्यात्मिक विचार शैली

सोमवार, 4 अगस्त 2025

☀️साधना - 3☀️

साधना

💖अगर आप ऋणानुबंध के अपने स्तर को जाँचना चाहते हैं, तो आप किसी अपरिचित जगह पर या किसी अनजाने फर्नीचर पर अकेले बैठने की कोशिश करें। खुद पर बारीकी से गौर कीजिए। 

💖आपका शरीर कितने आराम में है? क्या वह असहज है? क्या ऐसा लगता है कि वह कहीं और होना चाहता है? आपने देखा होगा कि बूढ़े लोगों के पास अक्सर एक पसंदीदा कुर्सी होती है।

 💖कई परिवारों में, लोग खाने की मेज पर किसी खास कुर्सी को चुनते हैं। इनमें से कुछ सुविधा या आदत की बात होती है। लेकिन यहाँ अक्सर ऋणानुबंध काम कर रहा होता है।

💖आप जितना अधिक ऋणानुबंध इकट्ठा करते हैं, उतना ही आप आध्यात्मिक विकास की सीढ़ी पर नीचे की ओर जा रहे होते हैं।

 💖कर्म आपके लिए एक सीमा तय करता है। जब वह सीमा ज्यादा आरामदेह हो जाती है, तो यह सावधान हो जाने का समय होता है।

💖 वही कुर्सी या कमरा आपको शारीरिक प्राइवेसी दे सकता है, लेकिन अगर आप उसपर अपना अधिकार समझने लगते हैं या उसे लेकर परेशान हो जाते हैं, जैसे कि आपकी पहचान इसी पर निर्भर है, तो यही समय है कि आप अपने कर्म को झकझोरना शुरू करें।

💖कई आध्यात्मिक परंपराओं में साधकों को मठ और आश्रम में रखने का कारण उन्हें एक निर्धारित भौगोलिक स्थान में रहने के लिए सक्षम बनाना था, जो ऋणानुबंध से मुक्त था। 

💖लेकिन इससे कभी-कभी नई सीमाएँ और क्षेत्र बन जाते थे, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

 💖इसका उद्देश्य हमेशा साधक को अपने क्षितिज कोसीमित करने के बजाय, उसका विस्तार करने के लिए सशक्त बनाना था। 

💖बाहरी दुनिया में, उनका ऋणानुबंध अक्सर उन्हें बार-बार कुछ खास लोगों या जगहों या परिस्थितियों की तरफ खींचता था।

💖 क्षेत्र-संन्यास में एक खास प्राण-प्रतिष्ठित भौगोलिक स्थान को कभी न छोड़ने की शपथ ली जाती है- यह एक ऐसा तरीका था जिससे साधक शारीरिक स्मृति के शक्तिशाली शिकंजे से खुद को आजाद कर लेते थे।

रविवार, 3 अगस्त 2025

💥जब मृतक आपके जरिए जीते हैं💥

जब मृतक आपके जरिए जीते हैं

🎉हाल ही में लॉस एंजिल्स में आयोजित एक कार्यक्रम में, मैंने चार महिला प्रतिभागियों को देखा जो एक जैसी दिखती थीं। वे बहनें नहीं थीं। बस उनकी डॉक्टर एक ही थी ! तो, ऐसे कारगर तरीके मौजूद हैं जिनसे हम आज अपनी आनुवांशिकता को नया रूप दे सकते हैं।

🎉भारत में, पारंपरिक रूप से संस्कार शब्द का इस्तेमाल हमारे वर्तमान पर हमारी आनुवांशिक स्मृति के स्थायी असर को बताने के लिए किया जाता है। आपका शरीर वास्तव में आपके मन की तुलना में एक खरब गुना ज्यादा स्मृति रखता है। संस्कार शब्द वंशगत स्मृतियों और छापों के भंडार को दिखाता है, जो हमें हमारे पूर्वजों, हमारे वंश या हमारी जाति से विरासत में मिले हैं।

🎉और इसलिए, जब कोई बच्चा बहुत ही अच्छा गाता है, तो लोगों का यह कहना आम बात है, 'वाह, क्या संस्कार हैं इस बच्चे के !' इसका मतलब है कि यह विशेष उपहार बच्चे को उसके जीन-पूल, उसके पैतृक ज्ञान से मिला है।

🎉ये आनुवांशिक स्मृतियाँ अपने आप में सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होर्ती । फर्क इस बात से पड़ता है कि हम उन्हें कैसे संभालते हैं। हमारे पूर्वजों की स्मृतियाँ हमारे भीतर मौजूद रहती हैं। लेकिन यह स्मृति बंधन का कारण बन गई है या हमारे लिए फायदेमंद है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमने उससे कितनी दूरी बनाई है।

🎉मृत लोग अलग-अलग तरीकों से आपके माध्यम से जीने की कोशिश करते हैं। इसे समझने में गलती मत कीजिए। अपने या आस-पास के लोगों के जीवन कोदेखिए। कई लोगों के लिए बच्चे पैदा करना अपने देश को आगे बढ़ाना या दंशার चीजों को अमर बनाने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना है कि वे मरने के बाद भी जीवित रहेंगे। इससे वे भावी पीढ़ियों तक जिंदा रहने की उम्मीद करते हैं। 

🎉तो अपने पूर्वजों को भी कम मत समझिए। वे भी आपके जरिए जीने की कोशिश कर रहे हैं। यह खुद को कायम रखने की वंशानुगत स्मृति की प्रकति है। हम अपने पूर्वजों के बहुत ऋणी हैं। लेकिन अगर हमें इस धरती पर एक आजाद, पूर्ण रूप से विकसित जीवन जीना है- अपने पूर्वजों की कठपुतली बनकर नहीं रहना है तो हमें पहले एक स्वर्तन व्यक्ति बनने के तरीके खोजने चाहिए।

🎉आध्यात्मिक प्रक्रिया पृथकता या अलग होने के भ्रम को तोड़ती है। इस मार्ग पर चलने का मतलब है, एक व्यक्ति (इंडिविजुअल) बनना। यह एक विरोधाभास लग सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं। जब आप कई प्रभावों का परिणाम होते हैं, तो आप एक भीड़ की तरह होते हैं। जब आप भीड़ का या प्रभावों का पुलिंदा होते हैं, तो रूपांतरण असंभव है। भीड़ समय के साथ विकास कर सकती है, लेकिन उसे रूपांतरित नहीं किया जा सकता।

🎉 जैसा कि रूपांतरण शब्द से पता चलता है, उसके लिए एक रूप की जरूरत होती है। सिर्फ अकेले व्यक्ति को ही रूपांतरित किया जा सकता है, या वह पृथकता के साथ अपनी सैकरी पहचान के परे जा सकता है। एक झुंड के लिए कभी प्रबुद्ध होना संभव नहीं है। प्रबुद्धता सिर्फ अकेले व्यक्ति को प्राप्त हो सकती है।

🎉मैं अक्सर मजाक करता हूँ कि सिर्फ दो तरह के भूत होते हैं: बिना शरीर के भूत और शरीर वाले भूत! अधिकतर लोग शरीर वाले भूत हैं। संक्षेप में कहें तो, वे अपने अतीत की छाया हैं। उनका जीवन बस उनके पूर्वजों की स्मृति से बना होता है।

🎉संस्कार महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये हमें यह याद दिलाते हैं कि हम कई सूक्ष्म और गहरे स्तरों पर स्मृति से आकार लेते हैं, जिनके बारे में हमें पता भी नहीं होता। हो सकता है कि आप इसके प्रति सचेत न हों, लेकिन मनुष्य के भीतर कुछ ऐसा होता है जो इस आजादी के खोने पर अप्रसन्न होता है।

🎉जेल का जीवन इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। जब मैं जेलों में कार्यक्रम आयोजित कर रहा था, तब मैंने इसे अपनी आँखों से देखा है। जेलों के बारे में दिलचस्प बात यह है कि वहाँ लोग वास्तव में बहुत अच्छी तरह व्यवस्थित हो सकते हैं।

 🎉समय पर खाना मिलता है; आपको कपड़े और आश्रय दिया जाता है; आपके लिए बत्तियाँ जलाई और बंद की जाती हैं; आपके लिए दरवाजे खोले जाते हैं और हाँ, आपके अंदर आ जाने पर बंद भी कर दिए जाते हैं! जो लोग बाहर बहुत अभाव में जीवन जीते हैं, उनके लिए जेल एक व्यवस्थित विकल्प है। 

💦ऋणानुबंध : शारीरिक स्मृति का माया-जाल💦

ऋणानुबंध : शारीरिक स्मृति का माया-जाल

👉इस तेजी से बदलती दुनिया में प्रतिबद्ध व समर्पित रिश्तों की क्या भूमिका है? वे किसने जरूरी हैं? क्या प्रतिबद्धता अपनी उपयोगिता खो चुकी है? क्या उसकी प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है?

👉ये सवाल मुझसे अक्सर पछे जाते हैं। ये सामाजिक सवाल हैं, लेकिन इस कर्म का एक बहुत शाश्वत पहल शामिल है। प्रतिबद्ध रिश्ते और शादी, सामाजिद व्यवस्थाएँ हैं। ये सामाजिक तौर पर मूल्यवान हैं, और मानव शरीर की याद रखने की क्षमता असाधारण है। मानव जीवन के लिए इस याद्दाश्त के नतीजे भी जबदरदर होते हैं।

👉यह कोई नैतिक तर्क नहीं है। यह बहत ही सरल समझ पर आधारित है। आपका शरीर स्मृति से भरा हुआ है: इसकी हर चीज प्रोग्रामिंग का नतीजा है, इसके रूप और रंग से लेकर इसकी बनावट और आकार तक।

👉 यही कारण है कि आपकी परदाद के घुटनों की गठिया की समस्या आप में भी है और आपको अपने पूर्वज बंदरों की आदतों से छुटकारा पाना मुश्किल लगता है! (मत भूलिए कि एक इंसान और एक चिंपांजी के डीएनए में 98.6 प्रतिशत समानता है!)

👉अब, शरीर की स्मृति उन सभी स्तरों पर काम करती है, जिनकी चर्चा हमने इस अध्याय में पहले की है। इस स्मृति का एक बहुत महत्वपूर्ण और बड़ा पहलू शारीरिक है (मनोवैज्ञानिक और ऊर्जा से अलग)। संस्कृत में, शरीर की इस भौतिक याद्दाश्त को ऋणानुबंध कहा जाता है।

👉 ऋणानुबंध वह शारीरिक स्मृति है जो आपके अंदर रहती है। जैसा कि हमने पहले देखा है, यह रक्त संबंधों का नतीजा है, और अहम बात ये है कि ये यौन संबंध का नतीजा भी हैं।

👉जहाँ भी शारीरिक निकटता होती है- खासकर यौन संबंध जैसी- वहाँ शरीर उस स्मृति को गहराई से महसूस करता है। और इसलिए किसी भी समाज में प्रतिबद्ध संबंधों की व्यवस्था एक गहन बुद्धिमत्ता (इन्टेलिजैन्स) पर आधारित थी।

👉 इसका तर्क सरल है: चूँकि किसी भी शारीरिक संपर्क में स्मृति का एक महत्वपूर्ण आदान-प्रदान होता है, अगर आपके शरीर की याद्दाश्त बहुत अधिक शारीरिक छापों में उलझती है, तो आपका सिस्टम 'भ्रमित हो जाता है। 

👉जब आपकी शरीर की याद्दाश्त का सिस्टम जटिल बन जाता है, तो आपके जीवन को व्यवस्थित होने में बहुत मेहनत लग सकती है।

👉इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि ऋणानुबंध में कुछ भी गलत नहीं है। यह जीवन का एक जरूरी हिस्सा है। उदाहरण के लिए, एक दंपति के बीच ऋणानुबंध के बिना भावी पीढ़ी संभव नहीं है।

👉 एक माँ और बच्चे के बीच ऋणानुबंध के बिना, बच्चाजीवित नहीं रह सकता। हालाँकि, सवाल सिर्फ यह है कि इसे एक उलझन बनाने के बजाय सहायक कैसे बनाया जाए; यह कैसे पक्का करें कि कोई रिश्ता एक बंधन में न बदल जाए?

👉आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले किसी व्यक्ति के लिए, ऋणानुबंध को सरल बनाना खासतौर पर आवश्यक हो जाता है, क्योंकि साधक का अंतिम उद्देश्य भौतिकता से परे जाना होता है। 

👉अगर कोई ऐसा इरादा रखता है, तो शरीर को बहुत ज्यादा स्मृति के बोझ से मुक्त रखना और एक सरल प्रक्रिया की तरह ही रखना बुद्धिमानी है। जब शारीरिक स्मृति को कम-से-कम रखा जाता है, तब अध्यात्म के द्वार खुलने शुरू हो सकते हैं।

👉शारीरिक स्मृति के कई परिणाम होते हैं। यौन संबध लोगों के बीच सबसे ज्यादा ऋणानुबंध पैदा करते हैं। इस आदान-प्रदान में महिला का शरीर अधिक ग्रहणशील होने के कारण शारीरिक अंतरंगता को पुरुष के मुकाबले ज्यादा गहराई से महसूस करता है।

 👉जब महिला बच्चे को जन्म देती है, तो इस स्मृति का एक बड़ा हिस्सा उसकी संतान में चला जाता है। यह एक आम तौर पर देखी जाने वाली चीज को स्पष्ट करता है: जब एक महिला गर्भवती होती है, तो उसके साथी का होना अक्सर उसके जीवन में कम महत्वपूर्ण हो जाता है।

👉 ऐसा इसलिए है, क्योंकि एक नई पीढ़ी के निर्माण के लिए जेनेटिक और शारीरिक कर्म के संदर्भ में, स्मृति का एक गहरा स्थानांतरण हो रहा होता है। 

👉उसमें अपने साथी के प्रति पहले वाली ग्रहणशीलता नहीं होती, अब वह अपनी संतान में शारीरिक स्मृति को संप्रेषित करने वाली एक नई भूमिका में होती है।

👉महिलाओं को अक्सर यह पता चलता है- जब वे गर्भवती होती हैं तो अपने माता-पिता के लिए और जो लोग उनके लिए बहुत करीबी थे, उनके लिए उनकी भावनाओं की गहराई कम होने लगती है। 

👉दूसरे रिश्तों में भावनात्मक लगाव का स्तर अक्सर कम होने लगता है। इस समय प्रकृति की प्रणाली काम कर रही होती है: अगर शरीर अपने माता-पिता को ज्यादा याद रखेगा तो वह नए बच्चे को, जो अलग जेनेटिक सामग्री का है, अच्छी तरह नहीं अपना पाएगा। अगर स्मृति बहुत ज्यादा होगी तो शरीर के भीतर संघर्ष होगा।

👉जैसा कि हमने देखा, संस्कृत शब्द कुल-वेदना (सामूहिक पीड़ा) का अर्थ है कि पूरे कुल की स्मृति आपके अंदर मौजूद रहती है।
 
👉आपका शरीर एक खास तरह से बर्ताव करता है, क्योंकि वह इन गहरी शारीरिक स्मृतियों को अपने साथ लेकर चल रहा है। जिसमें आपके लोगों, आपके कुल की पीड़ा एकलित है। अगर और अधिक ऋणानुबंध के साथ आप अपने सिस्टम को जटिल बनाते हैं, तो आपको पीड़ा बहुत ज्यादा हो सकती है।

💥जब मृतक आपके जरिए जीते हैं💥

जब मृतक आपके जरिए जीते हैं

🎉हाल ही में लॉस एंजिल्स में आयोजित एक कार्यक्रम में, मैंने चार महिला प्रतिभागियों को देखा जो एक जैसी दिखती थीं। वे बहनें नहीं थीं। बस उनकी डॉक्टर एक ही थी ! तो, ऐसे कारगर तरीके मौजूद हैं जिनसे हम आज अपनी आनुवांशिकता को नया रूप दे सकते हैं।

🎉भारत में, पारंपरिक रूप से संस्कार शब्द का इस्तेमाल हमारे वर्तमान पर हमारी आनुवांशिक स्मृति के स्थायी असर को बताने के लिए किया जाता है। आपका शरीर वास्तव में आपके मन की तुलना में एक खरब गुना ज्यादा स्मृति रखता है। संस्कार शब्द वंशगत स्मृतियों और छापों के भंडार को दिखाता है, जो हमें हमारे पूर्वजों, हमारे वंश या हमारी जाति से विरासत में मिले हैं।

🎉और इसलिए, जब कोई बच्चा बहुत ही अच्छा गाता है, तो लोगों का यह कहना आम बात है, 'वाह, क्या संस्कार हैं इस बच्चे के !' इसका मतलब है कि यह विशेष उपहार बच्चे को उसके जीन-पूल, उसके पैतृक ज्ञान से मिला है।

🎉ये आनुवांशिक स्मृतियाँ अपने आप में सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होर्ती । फर्क इस बात से पड़ता है कि हम उन्हें कैसे संभालते हैं। हमारे पूर्वजों की स्मृतियाँ हमारे भीतर मौजूद रहती हैं। लेकिन यह स्मृति बंधन का कारण बन गई है या हमारे लिए फायदेमंद है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमने उससे कितनी दूरी बनाई है।

🎉मृत लोग अलग-अलग तरीकों से आपके माध्यम से जीने की कोशिश करते हैं। इसे समझने में गलती मत कीजिए। अपने या आस-पास के लोगों के जीवन कोदेखिए। कई लोगों के लिए बच्चे पैदा करना अपने देश को आगे बढ़ाना या दंशার चीजों को अमर बनाने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना है कि वे मरने के बाद भी जीवित रहेंगे। इससे वे भावी पीढ़ियों तक जिंदा रहने की उम्मीद करते हैं। 

🎉तो अपने पूर्वजों को भी कम मत समझिए। वे भी आपके जरिए जीने की कोशिश कर रहे हैं। यह खुद को कायम रखने की वंशानुगत स्मृति की प्रकति है। हम अपने पूर्वजों के बहुत ऋणी हैं। लेकिन अगर हमें इस धरती पर एक आजाद, पूर्ण रूप से विकसित जीवन जीना है- अपने पूर्वजों की कठपुतली बनकर नहीं रहना है तो हमें पहले एक स्वर्तन व्यक्ति बनने के तरीके खोजने चाहिए।

🎉आध्यात्मिक प्रक्रिया पृथकता या अलग होने के भ्रम को तोड़ती है। इस मार्ग पर चलने का मतलब है, एक व्यक्ति (इंडिविजुअल) बनना। यह एक विरोधाभास लग सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं। जब आप कई प्रभावों का परिणाम होते हैं, तो आप एक भीड़ की तरह होते हैं। जब आप भीड़ का या प्रभावों का पुलिंदा होते हैं, तो रूपांतरण असंभव है। भीड़ समय के साथ विकास कर सकती है, लेकिन उसे रूपांतरित नहीं किया जा सकता।

🎉 जैसा कि रूपांतरण शब्द से पता चलता है, उसके लिए एक रूप की जरूरत होती है। सिर्फ अकेले व्यक्ति को ही रूपांतरित किया जा सकता है, या वह पृथकता के साथ अपनी सैकरी पहचान के परे जा सकता है। एक झुंड के लिए कभी प्रबुद्ध होना संभव नहीं है। प्रबुद्धता सिर्फ अकेले व्यक्ति को प्राप्त हो सकती है।

🎉मैं अक्सर मजाक करता हूँ कि सिर्फ दो तरह के भूत होते हैं: बिना शरीर के भूत और शरीर वाले भूत! अधिकतर लोग शरीर वाले भूत हैं। संक्षेप में कहें तो, वे अपने अतीत की छाया हैं। उनका जीवन बस उनके पूर्वजों की स्मृति से बना होता है।

🎉संस्कार महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये हमें यह याद दिलाते हैं कि हम कई सूक्ष्म और गहरे स्तरों पर स्मृति से आकार लेते हैं, जिनके बारे में हमें पता भी नहीं होता। हो सकता है कि आप इसके प्रति सचेत न हों, लेकिन मनुष्य के भीतर कुछ ऐसा होता है जो इस आजादी के खोने पर अप्रसन्न होता है।

🎉जेल का जीवन इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। जब मैं जेलों में कार्यक्रम आयोजित कर रहा था, तब मैंने इसे अपनी आँखों से देखा है। जेलों के बारे में दिलचस्प बात यह है कि वहाँ लोग वास्तव में बहुत अच्छी तरह व्यवस्थित हो सकते हैं।

 🎉समय पर खाना मिलता है; आपको कपड़े और आश्रय दिया जाता है; आपके लिए बत्तियाँ जलाई और बंद की जाती हैं; आपके लिए दरवाजे खोले जाते हैं और हाँ, आपके अंदर आ जाने पर बंद भी कर दिए जाते हैं! जो लोग बाहर बहुत अभाव में जीवन जीते हैं, उनके लिए जेल एक व्यवस्थित विकल्प है। 

💥स्मृति की परतें💥



स्मृति की परतें

❤️‍🔥योग परंपरा में विभिन्न स्मृतियों में अंतर करने का एक विस्तृत तरीका है। यह स्मृति के आठ आयामों या 'परतों को अलग-अलग देखता है: तात्विक (एलेमेंटल), परमाणविक (एटॉमिक), विकास-मूलक (इवोल्यूशनरी), आनुवांशिक (जेनेटिक), कर्मगत (कार्मिक), संवेदी (सेंसरी), स्पष्ट (आर्टिकुलेट), और अस्पष्ट (इनआर्टिकुलेट)।

❤️‍🔥आठों को दरअसल मनुष्य के कर्म के रूप में देखा जा सकता है। पहली चार तरह की स्मृतियों में व्यक्तिगत इच्छा की कोई भूमिका नहीं होती। अगली चार वे हैं जिनमें व्यक्तिगत इच्छा की भूमिका होती है। दूसरे शब्दों में, पहली चार हमारे सामूहिक कर्म बनाती हैं; अगली चार हमारे व्यक्तिगत कर्म बनाती हैं।

❤️‍🔥चलिए स्मृति के पहले चार पहलुओं को देखते हैं, जिनमें निजी इच्छा कोई भूमिका नहीं निभातीः

❤️‍🔥तात्विक स्मृति : आपके सिस्टम का निर्माण करने वाले तत्व - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश - आपको आकार देते हैं। वे सृष्टि की शुरुआत से ही स्मृतियों को अपने साथ रखे हुए हैं।

❤️‍🔥परमाणविक स्मृति-आपके शरीर को बनाने वाले परमाणुओं के बदलते पैटर्न- आपके सिस्टम को और आगे ढालते हैं।

❤️‍🔥विकास-मूलक स्मृति आपकी बायलॉजी को निखारती है: उदाहरण के लिए यह विकास-मूलक सॉफ्टवेयर है. जो आपको एक इंसान बनाता है, जानवर नहीं। चाहे आप डॉग-फूड खाएँ, तो भी आप इंसान ही रहेंगे! यह विकासगत कोड आपके डीएनए पर गहराई से अंकित है।

❤️‍🔥आपका शरीर वैसे भी क्या है? यह सिर्फ भोजन, पानी और हवा है. ये सभी आपको घरती ने दिया है। जिस पदार्थ को आप धरती कहते हैं और जिस पदार्थ को आप शरीर कहते हैं, वे अलग-अलग नहीं हैं

 ❤️‍🔥लेकिन स्मृतियों का एक जटिल मिश्रण उस पदार्थ को इस तरह से अलग-अलग करके देखता है कि वह पहचान में नहीं आता। वही मिट्टी भोजन बनाती है और जब आप उसे खाते हैं, तो वह आपका पोषण करती है, और आपको एक पौधा या जानवर बनाने के बजाय इंसान बनाती है। इस जीवन में मनुष्य होने का सौभाग्य मुख्य रूप से विकास-मूलक स्मृति के कारण है।

❤️‍🔥पानी, हवा, और भोजन के यही बाहरी तत्व हर इंसान के अंदर अलग-अलग बर्ताव करते हैं। जैसे ही आप उन्हें अंदर डालते हैं, वे बहुत अलग तरीके से काम करना शुरु कर देते हैं।

 ❤️‍🔥बोतल के अंदर मौजूद पानी, आपके अंदर जाते ही बहुत अलग होता है। बाहर मौजूद फल आपके अंदर जाकर बहुत अलग तरह से काम करता है। यह रूपांतरण मुख्य रूप से आपके भीतर परमाणविक, तात्विक और विकास-मूलक स्मृति की परस्पर क्रिया के कारण होता है।

❤️‍🔥स्मृति के कुछ खास आयाम हम सभी में हैं: तात्विक, परमाणविक और विकास-मूलक। लेकिन, हमारे आनुवांशिक और व्यक्तिगत कर्म अलग होते हैं। आनुवांशिक स्मृति परिवार से आती है, जो हमारे कई एक जैसे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों को तय करती है।

❤️‍🔥अब बात करते हैं उन चार स्मृतियों की जो हमारा सामूहिक कर्म बनाती हैं।

❤️‍🔥पहली है, हमारी निजी कर्म स्मृति: हमारे कर्मों की वे छाप जिसने समय के साथ हमें आकार दिया और अलग-अलग तरह का इंसान बनाया। हर व्यक्ति की अपनी विचित्नता और विशेषता, पसंद और नापसंद, आदतें और प्राथमिकताएँ होती हैं। 

❤️‍🔥हर इंसान में निजी कर्म-स्मृति का एक विशाल भंडार होता है। इसी कारण कोई भी दो मनुष्य, यहाँ तक कि जुड़वाँ भी, कभी पूरी तरह एक जैसे नहीं होते।

❤️‍🔥मौजूदा भौतिक और साँस्कृतिक वातावरण भी हमारे सिस्टम पर असर डालता है, जो तय करता है कि हमारा शरीर और मन दुनिया के प्रति कैसे रेस्पॉन्ड करेंगे और ये संवेदी स्मृति (सेंसरी मेमोरी) बनाते हैं।

👹कर्म की थैलियों के रूप में इंसान👹

कर्म की थैलियों के रूप में इंसान

😈जब मैं चार या पाँच साल का था, तो अक्सर मैं लोगों को धुंधली आकृतियों के रूप में देखता था। जब मैं बैठकर आस-पास अपने परिवार को देखता - मेरी माँ, पिता, भाई, बहनें - वे सब मुझे धुंधली आकृतियों के रूप में, भूतों की तरह, इधर-उधर घूमते दिखाई देते।

😈 जब मैं चल-फिर रहा होता या बात कर रहा होता था, तो वे मुझे इंसानों की तरह दिखाई देते थे। लेकिन अगर मैं सिर्फ यूँ ही बैठा होता, तो वे मुझे इधर-उधर तैरती हुई धुंधली आकृतियों जैसे नजर आते। 

😈और एक बार जब आप लोगों को आधे-ठोस धुंधले प्राणियों के रूप में देख लेते हैं, तो दैनिक जीवन का सारा ड्रामा एकदम अर्थहीन हो जाता है। 

😈अचानक, मेरे पिताजी आकर पूछते, 'तुम्हारी गणित की तिमाही परीक्षा का क्या हुआ?' मुझे कोई अंदाजा नहीं होता था कि वह किस बारे में बात कर रहे हैं! यह म्यूट बटन दबाकर टेलीविजन देखने जैसा था।

😈एक चीज जिसका मुझपर बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ, वह था किसी व्यक्ति का लिंग। यह चीज लंबे समय तक मेरे दिमाग में दर्ज नहीं होती थी। 

😈बड़े होने के बाद भी, मैंने कभी किसी व्यक्ति के शारीरिक आकार पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जिस चीज ने हमेशा मेरा ध्यान खींचा, वह था एक ज्यादा बड़ा और धुंधला आकार, जो मैं उनके चारों ओर देख सकता था।

😈 मैंने खुद कभी इन आकारों को समझने की जरूरत महसूस नहीं की। लेकिन मुझे बाद में एहसास हुआ कि ये ऊर्जा-शरीर के रूप थे, जो हर जीवित प्राणी के पास होते हैं। योग शब्दावली में, इसे प्राणमय-कोष कहते हैं। इस स्तर पर, अंकित कर्मों को साफ देख पाना संभव है।

😈इसे समझना मुश्किल हो सकता है। मेरा दिमाग कभी किसी ऐसी चीज को समझने का इच्छुक नहीं होता है, जो मैं देखता है। स्पष्ट रूप से समझने के लिए, मैं उस चीज को ज्यादा गौर से देखता हूँ, लेकिन मैं किसी चीज को बौद्धिक रूप से समझने की कोशिश नहीं करता।
 
😈अगर आप गहराई से देखना चाहते हैं, तो आप सिर्फ अपने बोघ को तेज करना सीखिए। 

😈उदाहरण के लिए, अगर आप किसी पेड़ को बहुत ध्यान से देखते हैं, तो आपको बागवानी का मैनुअल पढ़ने की जरूरत नहीं है- आप अंदाजा लगाकर बता सकते हैं कि उसे पर्याप्त धूप और पानी मिल रहे हैं या नहीं।

😈 (वेशक, आज यह एक विडंबना है कि कई लोग पेड़ को समझने की बजाय, पेड़ के नीचे बैठकर पेड़ों पर किताब पढ़ना ज्यादा ठीक समझते हैं!)

😈योग अनुशासन पूरा 'गौर से देखना' सीखने के बारे में ही है। इसीलिए मैं अपने आस-पास के लोगों से कहता रहता हूँ: कुछ भी मत खोजिए। जीवन का अर्थ मत खोजिए। भगवान की तलाश मत कीजिए। 

😈गौर से देखिए-बस इतना ही करना है। यह एक आध्यात्मिक साधक का मौलिक गुण है, क्योंकि जीवन का अर्थ है, जो मौजूद है उसे देखना, न कि उसे देखना जो आप देखना चाहते हैं।

😈चूँकि लोग अपने व्यक्तित्व के साथ, जो कि उनके कार्मिक तत्व द्वारा ही निर्मित होता है इतनी ज्यादा पहचान जोड़ कर रखते हैं कि उन्हें वही सीमाएँ नजर आती हैं।

😈 वे हर किसी को सीमित व्यक्ति के रूप में देखते हैं क्योंकि वे खुद को भी उसी रूप में देखते हैं। जीवन को केवल जीवन की तरह देखने के बजाय, वे इसके टुकड़ों से अपनी पहचान जोड़ते हैं।

😈अब मानव के लिए कर्म के विकृत करने वाले लेंस से परे जाने का समय आ गया है- यह एक ऐसा लेंस है जो उन्हें विकृत रूप को वास्तविकता की तरह दिखाता है, इस भव्य जीवन की बजाए खंडित और स्मृतियों से बने मनोवैज्ञानिक जीवन से भ्रमित करता है।

 😈इस सच्चाई के प्रति जागृत होने का यही समय है कि जीवन के अलावा इसका कुछ और होने का विश्वास अपराध है। दुर्भाग्य से, अपने व्यक्तित्व की हमारी सोच अपने अलग होने की भावना से आती है, और यही सारे दुखों का आधार है।

😈जिस तरह हर परमाणु में विशाल शक्ति छिपी हुई है (अकल्पनीय और विशाल स्तर पर विनाश करने के लिए पर्याप्त), उसी तरह मानव बुद्धिमत्ता (इन्टेलिजैन्स) को विचार और भावना के परमाणु रूपि स्तर पर तोड़ दिया गया है।

 😈ये पीड़ा और विनाश का स्रोत बन गए हैं। धरती माता से पूछिए - वह जरूर सहमत होंगी ! हमारी अलग पहचान ने इस शानदार सृष्टि को तोड़ कर रख दिया है और हमारे जीवन की सर्वव्यापकता को चकनाचूर कर दिया है।

💮स्मृति के रूप में कर्म💮

स्मृति के रूप में कर्म

जीवन के विरुद्ध सिर्फ एक ही अपराध होता है: यह विश्वास करना कि आप जीवन के अलावा कुछ और हैं।

स्मृति का विशाल भंडार

👍एक बार ऐसा हुआ...

🧘‍♀️एक दिन शंकरन पिल्लै अपनी बीवी से बहुत नाराज हो गए और घर से बाहर चले गए। पूरी रात सड़कों पर भटकने के बाद, वह नाश्ते के लिए एक रेस्तरां में पहुँचे। जब परोसने वाला उनकी मेज पर आया, तो वह बोले, 'मेरे लिए एक ठंडी, पतली कॉफी, ज्यादा नमक वाला सांभर और पत्थर की तरह सख्त इडली लेकर आओ।'

👍परोसने वाला हैरान रह गया, 'लेकिन सर, मैं आपको गर्मागर्म कड़क कॉफी, स्वादिष्ट सांभर और एकदम नर्म इडली परोस सकता हूँ।'

👍'मूर्ख कहीं के, तुम्हें क्या लगता है कि मैं यहाँ नाश्ते का मजा लेने आया हूँ?' शंकरन पिल्लै ने झुंझलाते हुए कहा, 'मुझे बस घर की याद आ रही है!'

👍अगर आपको एक बार किसी चीज की आदत लग जाए, चाहे वह सुखद हो या दुखद, अच्छी हो या बुरी, आप उसे छोड़ नहीं सकते, और फिर इस बात से फर्क नहीं पढ़ता कि वह क्या चीज है।

👍अगर इरादा या इच्छा कर्म को तय करती है, तो यह सवाल उठना लाजिमी है, कि आपकी इच्छा जागती कहाँ से है?

👍जैसा कि हमने देखा है, इसका संबंध आपकी अलग होने की पहचान से है। फिर यह पहचान कहाँ से उभरती है?स्मृति से।

👍आप यह मानते हैं कि आप एक व्यक्ति-विशेष हैं क्योंकि आपकी याद्दाश्त आपको बताती है कि आप एक व्यक्ति-विशेष हैं।

👍इसलिए शायद, कर्म को स्मृति के रूप में बताना ज्यादा सटीक और ज्यादा उपयोगी होगा।

👍जरा इसपर गौर कीजिए। आप खुद को जो कुछ भी मानते हैं, वह स्मृति का नतीजा है। जिसे आप 'मैं' कहते हैं, यह हर मायने में, आपके अतीत की ही एक उपज है।

👍इन पाँच इंद्रियों के जरिए आप जिन चीजों के संपर्क में आए हैं आपने जो भी देखा, सुना, सूँघा, चखा और छुआ वह आपकी याद्दाश्त में मौजूद है और आपके व्यक्तित्व पर असर डालता है। जागते हुए और सोते हुए आपने जो भी याद्दाश्त जमा की है, वह सब इस भंडार में है।

👍आप इसके प्रति चाहे जागरूक हों या न हो, आपके शरीर की हर कोशिका इसे याद रखती है और आपके जीवन का हर पल, उसी स्मृति से काम करता है। जीवन हर पल आपको आपके कर्म के बारे में बताता रहता है। समस्या यह है कि आप सिर्फ अपने विचारों को सुनते हैं या अपने पड़ोसियों को! अगर आप केवल जीवन प्रक्रिया की सुनते, तो किसी शिक्षा, किसी धर्मग्रंथ की जरूरत नहीं होती।

👍कर्म एक शोर बड़ा होता है। अगर आप इसे नहीं सुन सकते, तो ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि अभी आपको बाहरी दुनिया का शोर सुनने की आदत है। लेकिन एक बार जब आप अपनी आँतरिकता को सुनना सीख जाते हैं, तो आप कर्म के शोर को एकदम स्पष्ट सुन सकते हैं। वह शोर इतना तेज है, कि आप उससे चूक नहीं सकते !

👍आपका शरीर उस भोजन का एक ढेर है, जिसे आपने समय के साथ शरीर के अंदर डाला है। आपका मन उन छापों और विचारों का एक ढेर है, जिनका आपने समय के साथ मंथन किया है और आत्मसात किया है। दोनों ही अतीत का सृजन हैं। और दोनों ही स्मृति के उत्पाद हैं। तो आप चाहे अपने शरीर को अपनी पहचान बनाएँ या अपने मन को, जिसे आप आपका अपना व्यक्तित्व मानते हैं वह केवल स्मृति का एक ढेर है। हर चीज जिसे आप मैं मानते हैं उसका सार-तत्व कर्म है।

👍अभी, अगर आप अपने घर से थोड़ा दूर चलते हैं, तो सैंकड़ों अलग-अलग तरह की गंध को आप अपने आस-पास महसूस करते हैं। जरूरी नहीं है कि आप इन सबके प्रति सचेत हों। यदि कोई जब बहुत तेज गंध आपको आती है सिर्फ तभी उसपर आपका ध्यान जाएगा। लेकिन आपके नथुने जिन सैंकड़ों किस्मों की गंध के संपर्क में आए हैं, वे वास्तव में आपकी स्मृति में दर्ज हो गई हैं।